SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011 विष्णुपुराण में नग्न पुरुष (दिगम्बर मुनि) का एक भिन्न प्रकार से चित्रण किया है। ऋक्, साम और यजुः यह वेदत्रयी वर्गों के आचरण रूप हैं। मोहवश इसे त्यागने वाला पापी पुरुष ही नग्न कहलाता है। सब धर्मों का आचरण वेदत्रयी ही है, उसका त्याग कर देने पर ही पुरुष नग्नसंज्ञक होता है। इससे स्पष्ट है कि नग्न दिगम्बर मुनि वेदत्रयी को नहीं मानते थे। एक बार सौ दिव्य वर्षों तक देवताओं और दैत्यों में संग्राम हुआ। उसमें दैत्यों ने देवताओं को हरा दिया। देवताओं की प्रार्थना पर विष्णु प्रकट हुए। देवताओं ने अपने शरीर से मायामोह उत्पन्न किया। मायामोह ने देखा कि महान् असुर नर्मदा तट पर तप में रत है। तब उस मयूर पंख धारण करने वाले नग्न एवं मुड़े हुए बाल वाले मायामोह ने उन असुरों से मीठे वचनों में कहा, कि तुम लौकिक फल की कामना से तप करते हो या पारलौकिक फल पाना चाहते हो? असुरों ने कहा कि पारलौकिक फल की प्राप्ति के लिए हम तप कर रहे हैं। मायामोह ने कहा कि मेरे कहे अनुसार तप करो। ऐसा कह कर उन्हें वैदिक मार्ग से हटा दिया। मायामोह ने सत्-असत्, मोक्षकारक-मोक्षबाधक, परमार्थ-अपरमार्थ कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य, वस्त्रहीनों का धर्म-वस्त्रधारियों का धर्म इत्यादि बतलाकर दैत्यों को धर्मविमुख कर दिया। वे दैत्य उस धर्म को मानने वाले होने से आर्हत् कहे जाने लगे। उन्होंने त्रयीधर्म की बात ही छोड़ दी। उन दैत्यों में से कोई वेदों की, कोई यज्ञानुष्ठान की, कोई ब्राह्मणों की निंदा करने लगा। उन्होंने परस्पर में कहा कि हिंसा में धर्म कहना अयुक्त है अग्नि में हवि झोंकने से फल की प्राप्ति होगी, यह भी अज्ञानियों की ही बात है। अनेक यज्ञों के द्वारा देवत्व को प्राप्त होकर भी इन्द्र को शमी आदि काष्ठ ही खाना पड़ता है तो उससे पत्रभक्षी पशु ही उत्तम है। यदि यज्ञ में बलि होने वाले पशु को स्वर्ग मिलता है तो यजमान अपने पिता का बलिदान करके ही उसे स्वर्ग क्यों नहीं प्राप्त करा देता है? यदि किसी और के भोजन करने से कोई तृप्त हो सकता है तो भोजन सामग्री साथ ले जाने का परिश्रम ही क्यों किया जाय? पुत्रगण घर पर ही श्राद्धकर उसे तृप्त कर दिया करें। इस प्रकार के वाक्यों से दैत्य त्रयीधर्म से विमुख हो गए।" आगे कहा गया है कि वेदत्रयी को छोड़ने से दूषित हुए इन नग्नपुरुषों के साथ सम्भाषण और स्पर्शादि का भी त्याग करना चाहिए।।2 इस प्रकरण से निम्नलिखित तथ्य द्योतित होते हैं1. विष्णु वेदविद्या का उपदेश देकर दैत्यों को अपने मार्ग से च्युत होने को विवश नहीं कर सके। 2. दैत्यों में संभवतः दिगम्बर मुनि के प्रति आदरभाव था। अतः विष्णु ने मायामोह के रूप में नग्न दिगम्बर रूप बनाया। 3. नग्न दिगम्बर रूप में विष्णु ने दैत्यों को वेदत्रयी से हटने का उपदेश दिया। 4. दिगम्बर साधु उस समय मयूरपिच्छी अपने साथ रखते थे। अत: मायामोह भी पिच्छ-धारी हुआ।
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy