SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 41 अनेकान्त 64/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2011 आज सारा संसार इन्द्रियों का दास बना हुआ है। बड़े-बड़े बलवान योद्धा और विचारशील विद्वान भी इन्द्रिय के गुलाम बने हुए हैं और अपना अधिकतर समय इन्द्रियों को तृप्त करने में लगाया करते हैं। अनुशासन बहुत जरूरी है। अश्व को लगाम, हाथी को अंकुश, ऊँट को नकील और साइकिल स्कूटर आदि वाहनों के लिए ब्रेक जरूरी है। ब्रेक है तो सुरक्षा, नहीं तो एक्सीडेन्ट। लगाम है तो हार्सपावर (अश्व) नियंत्रित अन्यथा अनियन्त्रित। अंकुश है तो हाथी राह पर नहीं तो उन्मत्त स्वच्छन्द। सच ही तो कहा है कि ब्रेक है तो कार नहीं तो बेकार। ऐसी स्थिति में जीवन की गाड़ी का क्या होगा? इन्द्रिय संयम में पंचेन्द्रिय के विषयों की विरक्ति का आचरण है। एक-एक इन्द्रिय के वशीभूत हो एक-एक प्राणि अपने प्राण गवां बैठते हैं तो पंचेन्द्रिय के वशीभूत प्राणियों की क्या स्थिति होगी? हाथी स्पर्श के लोभ में आकर जंगल में बनी हुई कृत्रिम हथिनी की तरफ दौड़ता है और उस जगह बने हुए अदृश्य गड्ढे में गिर जाता है। कुछ दिनों बाद जब कोई वहां पहुंचता है तो वह भूखा प्यासा हाथी निर्मद होकर दीन हीन स्थिति में देखता है। ऐसी स्थिति में हाथी पकडने वाला थोड़ा थोड़ा पानी, थोड़ी-थोड़ी घास पत्ती देता है। हाथी उसे हितैषी/ रक्षक समझने लगता है और फिर एक दिन वह बलशाली हाथी के एक छोटे से अंकुश के इशारे पर चलने लगता है। मछली मारने वाले, मछली पकड़ने के कांटे में आटा लगाकर पानी में डालते हैं। मछली आटा खाती है जिससे उसका कण्ठ उस नुकीले कांटे से छिद जाता है और वह प्राण गवां बैठती है। पतंगा सुनहरी ज्योति में आसक्त होकर दीपक की लौ पर अपने प्राण गवां बैठता है। गंध लोलुपी भ्रमर गंध पान में इतना आसक्त हो जाता है कि वह भूल ही जाता है कि फूल की पंखुरी बंद होने वाली है। दिन ढलता है, फूल मुरझाता है और भ्रमर उसी में बंद हो जाता है। यद्यपि उसमें छेदने की क्षमता है। वह कठोर से कठोर लकड़ी में भी छेद कर देता है किन्तु इस प्रलोभन में कि यदि आज कलियां छिद जायेंगी, टूट जायेंगी तो कल मुझे यह गंध/पराग कहां से मिलेगा? और इसी आसक्त भावना से वह वहीं बैठा रहता है, सांस रूंधती है और भ्रमर प्राण गवां बैठता है। मोहक स्वरों में आसक्त हिरण ठिठक जाता है, कीलित हो जाता है। वह इस तरह बेभान हो जाता है कि घात लगाये बैठे शिकारी की तरफ ध्यान ही नहीं जा पाता और वह प्राणी अपने प्राणों को गवां बैठते हैं। सर्प के बारे में कहा जाता है कि वह बांसुरी के स्वरों में इतना मग्न हो जाता है किसब कुछ भूल जाता है, सपेरे उसे पकडकर उसका दांत तोड देते हैं फिर काल माना जाने वाला सर्प भी एक पिटारे में बंद हो जाता है। मन तो सभी इन्द्रियों का राजा है। इसी के आर्डर से सारी इन्द्रियां काम करती हैं। इन्द्रियां तो प्रवृत्त होती हैं किन्तु इन सब का शासक सम्राट तो मन है और यही मन इन्द्रियों द्वारा गृहीत विषयों का वास्तविक रस लेता है। मन की पूर्ति के लिये ही इन्द्रियां विषयरत रहती हैं। आचार्य पूज्यपाद ने समितियों में प्रवृत्ति करने वाले मुनि को उनका परिपालन करने के लिये जो प्राणियों का और इन्द्रियों का परिहार होता है वह संयम है। समितिषु वर्तमानस्य प्राणीन्द्रियपरिहारस्संयमः। अनुशासन और इन्द्रिय संयम में सम्यक आचार की भूमिका
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy