SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनाचार्यों द्वारा प्रतिपादित अहिंसा एवं विश्वशान्ति 7. वही। छेदन बन्धन पीडनमति मारारोपणं व्यतीचारः। आहार वारणीय व स्थूल वधाद् व्युपरते पंच।।54।। 8. वही। पजचाणुव्रत निधयो निरतिक्रमणाः फलन्ति सुरलोकम्। यत्रावधिरष्टगुणाः दिव्यशरीरं च लभ्यन्तें।।63।। 9. तत्त्वार्थसूत्र, उमास्वामी, सूत्र-13, अध्याय-7 अर्थात् (7/13) 10. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, हिंसाया अविरमणं हिंसा परिणमनमपि भवति हिंसा तस्मात्प्रमत्तयोगे प्राण व्यपरोपण नित्यम्।।48।। 11. राजवार्तिक- भट्ट अकलंकदेव अध्याय-7 सूत्र 13 की वार्तिका-12 12. तत्त्वार्थसूत्र, 7/11 13. पुरुषार्थदेशना आ. विशुद्धसागर द्वितीय संस्करण, 2008 पृष्ठ-141 14. श्रावकाचार संग्रह, भाग-1, सं. पं. हीरालाल शास्त्री, जैन संस्कृति संरक्षक संघ सोलापुर, तृतीय आवृत्ति पृष्ठ-160 श्लोक-303 से 305 तक 15. श्रावकाचार संग्रह, भाग-1 वही पृष्ठ 313 श्लोक क्र. 12, 13 एवं 15,16 16. 'अहिंसा परमो धर्मः' लेखक स्वामी ब्रह्मेशानन्द, जैन भारती, वर्ष-56, अंक-5, मई-2008, गंगाशहर 17. दशवैकालिक-6/11 (भगवान महावीर स्मृतिग्रंथ) प्रकाशक-महावीर निर्वाण समिति उ.प्र. लखनऊ, संपादक-डॉ. ज्योति प्रसाद जैन, 1975 18. वही 19. मानवता की धुरी, नीरज जैन, पृष्ठ 37 एवं 38 तृतीय संस्करण-1993 20. महाभारत/अनुशासन-पर्व-5-23 एवं 116-29 21. शान्ति पर्व/340/89 - जवाहर वार्ड, बीना (म.प्र.) सम्प्रति-निदेशक वीर सेवा मन्दिर, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 09311250522
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy