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________________ अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011 श्रावक या श्राविका एक मात्र इसी व्रत का दोष रहित पालन करे तो बहुत से पापासवों से बचा जा सकता है। दिशाओं की मर्यादा पूर्वक, बिना प्रयोजन पापबन्ध के कारणभूत कार्यों से विरक्त होना अनर्थदण्डविरति कहलाता है। अनर्थदण्ड पापानव का एक ऐसा कारण है, जिससे व्यक्ति बिना किसी मतलब के पाप कार्य करता है, इससे अपना प्रयोजन तो सिद्ध होता नहीं है, केवल पाप का बन्ध होता है। अनर्थदण्डविरति में निष्प्रयोजनभूत पाप कार्यों का त्याग किया जाता है। अनर्थदण्ड पाँच कारणों से होता है, इसलिए अनर्थदण्ड के पाँच प्रकार माने गये हैं(1) पापोपदेश, (2) हिंसादान, (3) अपध्यान, (4) दुःश्रुति और (5) प्रमादचर्या।। आचार्य अमृतचन्द ने द्यूतक्रीड़ा (जुआ) को छठा अनर्थदण्ड घोषित किया है।" १. पापोपदेश अनर्थदण्ड बिना प्रयोजन दूसरों को पाप का उपदेश अर्थात् परामर्शादि देना पापोपदेश अनर्थदण्ड है। पुरुषार्थसिद्ध्युपाय के अनुसार बिना कारण किसी पुरुष को आजीविका के साधन विद्या, वाणिज्य (व्यापार), लेखन-कला, खेती, नौकरी और शिल्प आदि अनेक प्रकार के कार्यों एवं उपायों का उपदेश देना, यह सब अनर्थदण्ड (बेकार की हिंसा) के अन्तर्गत आता है। वे कहते हैं विद्यावाणिज्यमषीकृषिसेवाशिल्पजीविनां पुंसाम्। पापोपदेशदान कदाचिदपि नैव वक्तव्यम्॥१२ अत: गृहस्थ श्रावकों को इस तरह के उपदेश-सलाह आदि का त्याग कर देना चाहिए। कुछ शास्त्रकारों का तो यह भी कहना है कि हिंसा, झूठ, खेती-व्यापार एवं स्त्री-पुरुष समागम आदि से संबद्ध समस्त उपदेश आदि वचन व्यापार पापोपदेश के अन्तर्गत हैं जो उवएसो दिज्जदि किसिपसुपालणवणिज्जपमुहेसु। पुरसित्थीसंजोए अणत्थदण्डो हवे विदिओ॥१३ ।। एक समय था जब व्यापार-उद्योग आदि का निर्णय करते समय यह विशेष ध्यान रखा जाता था कि अमुक व्यापार या उद्योगादि में हिंसा तो नहीं होगी परन्तु आज कितने लोग हैं जो इन सब बातों पर विचार करके व्यापारादि कार्य करते हैं। २. हिंसादान अनर्थदण्ड बिना प्रयोजन हिंसाजनक उपकरणों का दान, जिनसे हिंसा हो सकती हो, हिंसादान अनर्थदण्ड कहा जाता है। अस्त्र, शस्त्र, कीटनाशक, विषैली गैस, फरसा, तलवार, धनुष, कुदाल, हल, करवाल, सांकल, काटा, विष, रस्सी, चाबुक, दण्ड, अग्नि आदि हिंसा के उपकरणों का दान हिंसादान कहलाता है। स्वामी कार्तिकेय ने तो बिल्ली, कुत्ता आदि हिंसक जानवरों को पालने में हिंसादान नामक अनर्थदण्ड बताया है। आजकल यह देखने में आता है कि तथाकथित आधुनिकता अथवा बच्चों के कहने पर या स्वयं ही अपनी इच्छा से कुछ घरों में कुत्ते-बिल्लियाँ आदि
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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