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________________ जैनाचार्यों द्वारा प्रतिपादित अहिंसा एवं विश्वशान्ति -प्राचार्य पं. निहालचन्द जैन १. अहिंसा की पृष्ठभूमि - अहिंसा मनुष्य की पहली पहचान है। मनुष्य की मौलिकता और स्वभाव का जीवन सूत्र है- अहिंसा। हिंसा- मनुष्य की निर्मिति है। जितनी कम हिंसा हो, उतना ही जीवन श्रेष्ठतर होगा। Less Killing is better living मनुष्य जो चाहे हो सकता है, हिंसक भी बन सकता है और अहिंसक भी। यह स्वतंत्रता पशु में नहीं है। वह जो हो सकता है वही है। परन्तु मनुष्य की वर्तमान की वास्तविकता, भविष्य में उससे कहीं श्रेष्ठ होने की सम्भावना से जुड़ी है। अहिंसा पौरुषेय आचरण है। हिंसा भले ही अपरिहार्य हो, परन्तु यह जीवन का नीति निर्देशक तत्व नहीं बन सकता। अहिंसा समस्त नैतिकताओं एवं धर्मों का मूल है। अहिंसा- पंथ विशेष का न तो दर्शन है और न ही किसी सम्प्रदाय का धार्मिक नारा है। यह तो प्राणी के मूल अस्तित्व से जुड़ी एक स्वाभाविक जीवन शैली है। अहिंसा को जब हम सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक जीवन फलक की दृष्टि से विचारते हैं तो यह अनेक गुणों की समष्टि है। शांति, प्रेम, करुणा, दया, कल्याण, अभय, रक्षा और अप्रमाद आदि अहिंसा के पर्यायवाची हैं। आत्मीयता, त्याग, समता और करुणा अहिंसा के आधार हैं। वस्तुतः ये सभी गुण मनुष्य के उदात्त जीवन मूल्यों की धरोहर हैं। जो भी मानव के लिए आदर्श निर्धारित किये गये हैं वे सभी एकमात्र अहिंसा को अपनाने पर प्राप्त किये जा सकते हैं। अहिंसा एक समग्रचिन्तन है, एक सम्पूर्ण जीवन दर्शन है। विश्व समन्वय अनेकान्त-पथ, सर्वोदय का प्रतिपल गान। मैत्री करुणा सब जीवों पर, धर्म अहिंसा ज्योति महान॥ २. अहिंसा की प्रासंगिकता अमेरिका का विश्व व्यापार केन्द्र और सुरक्षा केन्द्र (पेंटागन) आतंकवादी हिंसा की बलि चढ़ जाने के बाद विश्व के तमाम राष्ट्रों ने अहिंसा की अनिवार्यता महसूस की अतएव अमन-चैन और शान्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा महात्मा गांधीजी के जन्मदिन 2 अक्टूबर 2007 को विश्व भर में 'अहिंसा दिवस' मनाए जाने की घोषणा की गई। भारतीय संस्कृति एवं जैनधर्म में पंच महाव्रतों में प्रथम एवं सर्वोच्च स्थान अहिंसा को दिया गया। अहिंसा न केवल वैयक्तिक जीवन साधना के रूप में बल्कि वैश्विक नव समाज रचना के लिए इसकी अनिवार्यता स्वीकार की जाने लगी। लोकतंत्र में अहिंसा के बल पर ही कमजोर वर्ग को वैसी ही सुरक्षा व भरण-पोषण सुलभ हो सकता है, जैसा सबल लोगों को। फ्रान्स की राज्य क्रान्ति और रूस में साम्यवाद के लिए हिंसा का ताण्डव हुआ और विन
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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