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________________ अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011 दो तिण्णि व अज्जाओ बहुगीओ वा सहत्थंति।। मूलाचार 4/191 वृत्तिसहित 32. बृहत्कल्प भाष्य उ. 1/2, 2/11, 1 33. बृहत्कल्प सूत्र प्रथम उद्देश प्रतिबद्धशयासूत्र (जै. सा. का. वृ. इति. भाग 2, पृष्ठ 241) 34. अण्णोणणणुकूलाओ अण्णोणाहिरक्खणाभिजुत्ताओ। गयरोसवेरमायासलज्जमज्जादकिरियाओ।। मलाचार 4/188 35. ज्ञानार्वण 12/57 36. हिस्ट्री आफ जैन मोनासिज्म, पृष्ठ 473 37. मूलाचार 4/189 38. ण य परगेहमकज्जे गच्छे कज्जे अवस्सगमणिज्जे। गणिणीमापुच्छित्ता संघाडेणेव गच्छेज्ज।। मूलाचार 4/192 39. रोदणण्हावणभेयजपयणं सुत्तं च छव्विहारंभे। विरदाण पादमक्खणं धोवणगेयं च ण य कुज्जा।। - मूलाचार 4/193 40. असिमसिकृषि वाणिज्यशिल्पलेखक्रियाप्रारम्भास्तान् जीवघातहेतून्। -मूलाचार वृत्ति 4/193 41. कुन्द. मूलाचार 4/74 42. गच्छाचार पइन्ना 113 43. वही 110 44. तिण्णि व पंच व सत्त व अज्जओ अण्णमण्णरक्खाओ। थेरीहिं सहंतरिदा भिक्खाय समोदरन्ति सदा।। मूलाचार 4/194 45. वही वृत्ति 46. सुत्तपाहुड श्रुतसागरीय टीका 22 तथा दौलत क्रियाकोश 47. गच्छाचार पइन्ना, 129-130 48. मूलाचार 5/80-82, वृत्तिसहित 49. पंच छ सत्त हत्थे सूरी अज्झावगो य साधु य। परिहरिऊण ज्जाओ गवासणेणेव वंदति।। -मूलाचार 4/195 वृत्ति सहित 50. मूलाचार 4/179 वृत्ति सहित 51. वही 4/177 वृत्ति सहित 52. तासिं पुण पुच्छाओ इक्किस्से णय कहिज्ज एक्को दु। गणिणी पुरओ किच्चा जदि पुच्छइ तो कहेदव्वं।। वही 4/178 वृत्ति सहित 53. मूलाचार 4/180, 10/61 वृत्ति सहित। 54. वही, 331 55. मूलाचार 10/62 56. भगवती आराधना गाथा 334, 338 57. मूलाचार 4/183, 184, बृहत्कल्प भाष्य 2050 - बी-23/45, अनेकान्त भवन, शारदा नगर कालोनी, खोजवाँ, वाराणसी (उ०प्र०)
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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