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अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011
27 या संघ, कुल, श्रावक एवं मिथ्यादृष्टि आदि इन सबकी विराधना हो जाती है। अर्थात् गुणशून्य आचार्य यदि आर्यिकाओं का पोषण करते हैं तो व्यवस्था बिगड़ जाने से संघ के साधु उनकी आज्ञा पालन नहीं करेंगे। इससे संघ और उसका अनुशासन बिगड़ता है।
इस प्रकार श्रमणसंघ के अन्तर्गत आर्यिकाओं की विशिष्ट आचार पद्धति और उसकी महत्ता का यहाँ प्रतिपादन किया गया, शेष नियमोपनियम श्रमणों जैसे ही हैं। संदर्भ
1. मूलाचार सवृत्ति 4/187 2. ण विणा वट्टदि णारी एक्कं वा तेसु जीवलोयम्हि।
ण हि संउडं च गत्तं तम्हा तासिं च संवरणं।। प्रवचनसार, 225/5 3. स्त्रीणामपि मुक्तिर्न भवति महाव्रताभावात्- मोक्खपाहुड टीका, 12 4. वरिससयदिक्खियाए अज्जाए अज्ज दिक्खिओ साहू।
अभिगमण वंदण नमसणेण विणएण सो पुज्जो।। मोक्खपाहुड टीका 12/1 5. प्रवचनसार, 225/7 6. सुत्तपाहुड गाथा 7 7. सुत्तपाहुड 26 8. बृहत्कल्प 5/11-34 तक (चारित्र प्रकाश, पृ. 139) 9. अंगुत्तरनिकाय 1/9 10. भगवती आराधना 296 तथा वि. टीका 421 11. वही 4/180, 10/61 12. मूलाचार वृत्ति 4/177 13. त्यक्ताशेष गृहस्थवेषरचना मंदोदरी संयता। पद्मपुराण 14. श्रीमती श्रमणी पार्वे बभूवुः परमार्यिका। वही 15. गणिणी...मूलाचार 4/178, 192, गणिनी महत्तरिका- वही वृत्ति 4/178, 192 16. थेरीहिं सहंतरिदा भिक्खाय समोदरंति सदा। मूलाचार 4/194 17. मूलाचार 4/190 18. मूलाचार वृत्ति 4/190 19. सुत्तपाहुड 10, 21, 22 20. लिंगं इत्थीणं हवदि भुंजइ पिंडं सुएयकालम्मि।
अज्जिय वि एक्कवत्था वत्थावरणेण भुंजेइ।। सुत्तपाहुड 22 21. सुत्तपाहुड श्रुतसागरीय टीका 22 22. खुड्डा य खुड्डियाओ.... भ. आ. 296 23. भ. आ. 79 24. भ. आ. 80 विजयोदया टीका सहित 25. सागारधर्मामृत 8/37 26, आर्यिकाणामागमे अनुज्ञातं वस्त्रं कारणापेक्षया- भ.आ. विजयोदया 423, पृष्ठ 324 27. प्रवचनसार गाथा 225 के बाद प्रक्षेपक गाथा 5 28. क्रियाकोषः महाकवि दौलतरामकृत 29. प्रायश्चित्त संग्रह 119 30. आचारांग सूत्र 2/5/141 31. अगिहत्थमिस्सणिलये असण्णिवाए विशुद्धसंचारो।