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________________ अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 79 __ अर्थात् रात्रि भोजन करना, परस्त्री गमन करना, अचार-मुरब्बा आदि का सेवन करना तथा कंदमूल आदि अनन्तकाय पदार्थ खाना ये चार नरक के द्वार हैं। उनमें पहला रात्रिभोजन करना है। जो रात्रि में सब प्रकार के आहार का त्याग कर देते हैं, उन्हें एक माह में एक पक्ष के उपवास का फल मिलता है। हे युधिष्ठिर! विशेषकर तपस्वियों एवं ज्ञान संपन्न गृहस्थों को तो रात्रि में जल भी नहीं पीना चाहिए। मार्कण्डेय महर्षि ने भी कहा है कि सूर्य के अस्त हो जाने पर जल को खून तथा अन्न भक्षण को माँस के समान जानना चाहिए।20 अतः रात्रिभोजन त्याग करना ही श्रेयस्कर है। जैनधर्म और अन्य धर्मों के कुछ सिद्धान्तों का समावेश : 1. जैनदर्शन में प्रत्येक श्रावक को चाहे वह क्षत्रिय हो या शूद्र हो या वैश्य अथवा ब्राह्मण हो सभी को आपत्तिजनक वस्तुओं के क्रय-विक्रय का निषेध किया गया है। यदि वह आपत्तिजनक वस्तुओं का क्रय-विक्रय करता है, विरुद्धराज्यातिक्रमण नामक दोष से दूषित होता हुआ पाप का बंध करता है। इसी बात की अंशतः पूर्ति वैदिक परंपरा में देखने को मिलती है। वैदिक परंपरा में कहा गया है कि ब्राह्मण आपत्तिकाल में वाणिज्य कर्म कर सकता है किन्तु वस्तु विक्रय के संबन्ध में उस पर नियंत्रण थे। वह आपत्तिजनक वस्तुओं का कदापि क्रय-विक्रय नहीं कर सकता। ___ 2. जैन परम्परा में चारों वर्गों को मांस-मदिरा के त्याग का निर्देश दिया है परन्तु वैदिक परम्परा में तीनों वर्गों को श्रेष्ठ माना गया है और शूद्र वर्ण को निम्न माना गया है। निम्न वर्ण के लोग मांस, मदिरा का सेवन क्वचित् कदाचित् करते थे परन्तु वर्तमान समय में अधिकांश निम्न वर्ण के लोग मांस-मदिरा का अत्यधिक सेवन करने लगे हैं। वैदिक परम्परा में निम्न वर्ण को इन कर्मों को करने की छूट दे रखी थी। और कहा गया है कि श्रेष्ठ वर्ण के लोग इन पदार्थों का सेवन करते हैं तो वे भी निम्न वर्ण के समान माने जायेंगे। 3. जैनदर्शन में मन, वचन और काय की पवित्रता को मोक्ष का साधन कहा गया वहीं पारसी धर्म में हुमता-सद्विचार, हुमबसत्कथन, और हुबस्ता- सत्कार्य को स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति का साधन माना गया है। 4. जैनदर्शन की मूल जड़ अहिंसा के साथ क्षमा, नम्रता, दया, त्याग आदि को दस धर्मों का लक्षण कहा है। इसी प्रकार जैनाचार्य सोमदेव ने नैतिकता के लिए नीतिवाक्यामृत में धर्म में नैतिकता की आवश्यकता को प्रतिपादित किया है, वहीं ईसाई धर्म में महात्मा ईसा ने नम्रता, क्षमा, दया, त्याग आदि पर विशेष बल दिया है तथा ईसाई धर्म में भी नैतिकता को धर्म का केन्द्र माना है।3।। 5. आचार्य उमास्वामी ने परस्परोपग्रहो जीवानाम् सूत्र देकर जीवों को परोपकार करने का मार्ग बताया तथा कहा कि दूसरों की निंदा करने से नीच गोत्र का आश्रव होता है। इसी बात को इस्लाम धर्म में कहा है कि जो खुदा के मार्ग पर चलता है वही सही मार्ग पर चलता है। जो धन परोपकार के लिए खर्च किया गया है, वही धन तुम्हारा है शेष धन तुम्हारा नहीं है तथा कुरान शरीफ में इस बात पर भी जोर दिया है कि खुदा का बंदा शराब न पीये और जुआ न खेले इससे स्वास्थ्य और धन के साथ-साथ धर्म भी नष्ट होता
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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