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________________ तत्त्वसार (तत्त्वदेशना) के परिप्रेक्ष्य में हेय और उपादेय -डॉ. जयकुमार जैन तत्त्वसार दसवीं शताब्दी के आचार्य देवसेन की 74 गाथाओं में निबद्ध एक आध्यात्मिक कृति है, जिस पर सुप्रसिद्ध अध्यात्मवेत्ता आचार्य विशुद्धसागर महाराज ने 2004 ई. में विदिशा (म.प्र.) में ग्रीष्मकालीन प्रवचन दिये थे। उन्हीं का संपादित रूप तत्त्वसार (तत्त्वदेशना) के रूप में प्रकाशित है। प्रस्तुत आलेख में तत्त्वदेशना में आचार्य विशुद्धसागर जी महाराज द्वारा की गई हेय एवं उपादेय की देशना की सावधान समीक्षा की गई है। हेय शब्द हा धातु से यत् प्रत्यय से तथा उपादेय शब्द उप+आ उपसर्ग पूर्वक दा धातु से यत् प्रत्यय से निष्पन्न शब्द हैं, जिनका अर्थ क्रमशः त्याज्य और ग्राह्य या करणीय और अकरणीय है। क्षत्रचूड़ामणि में श्री वादीभसिंहसूरि ने कहा है 'हेयोपादेयविज्ञानं नो चेद्व्यर्थः श्रमः श्रुतौ। किं ब्रीहिखण्डनायासैस्तण्डुलानामसंभवे॥ अर्थात् हेय-उपादेय या कर्तव्य-अकर्तव्य का विवेक यदि नहीं है तो शास्त्र में परिश्रम करना निरर्थक है। चावलों के न होने पर धान्य के कूटने के परिश्रम से क्या प्रयोजन है? वे आगे पुनः हेयोपादेयविवेक की महत्ता बताते हुए कहते हैं तत्त्वज्ञानं च मोघं स्यात्तद्विरुद्धप्रवर्तिनाम्। पाणौ कृतेन दीपेन किं कूपे पततां फलम्॥ अर्थात् उस हेय और उपादेय के विवेक से विपरीत व्यवहार करने वालों का तत्त्वज्ञान भी निष्फल हो जाता है। हाथ में लिए हुए दीपक के साथ कुआँ में गिरने वालों का क्या फल है? सुस्पष्ट है कि शास्त्र-स्वाध्याय का फल हेय-उपादेय का विवेक है। आचार्य विशुद्ध सागर महाराज की तत्त्वदेशना में प्रसंगतः अनेकत्र इस संदर्भ में चर्चा की गई है। १. जिनवाणी श्रवण उपादेय तत्त्वसार के मंगलाचरण के व्याख्यान के प्रसंग में ही हेय-उपादेय की ओर संकेत कर आचार्यश्री कहते हैं कि तत्त्वश्रवण समझ में न आने पर भी उपादेय है। वे लिखते हैं 'भो ज्ञानी! जिनदेशना भव्य जीवों के लिए नरक में भी देशनालब्धि का कारण बनती है। अतः जब जिनवाणी का घोष होता है तब कल्याणेच्छुकों को पूर्ण शान्त होकर श्रवण करना चाहिए। कभी-कभी प्रारब्ध अवस्था में तत्त्व समझ में नहीं आता, फिर भी हमें श्रवण करते जाना चाहिए।"
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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