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________________ अनेकान्त 64/2, अप्रैल-जून 2011 95 पुराणों से लेकर सिद्धांत ग्रंथों तक प्रत्येक शास्त्र में किसी न किसी प्रकरण में इन कारणों का संकेत मिल ही जाता है। सभी का यहाँ उल्लेख नहीं करते हुए, उपलक्षण मात्र के लिये अध्यात्म जगत् के उपलब्ध आद्य ग्रंथकार आचार्य कुन्दकुन्दस्वामी की गाथाएँ प्रस्तुत हैं विसवेयणरत्तक्खयभयसत्थग्गहणसंकिलेसाणं। आहारुस्साणं णिरोहणा खिज्जए आऊ॥२५॥ हिमजलणसलिलगुरुयरपव्वयतरुरुहणपडणभंगेहि। रसविज्जजोयधारणअणयपसंगेहि विविहेहि॥२६॥ इय तिरियमणुयजम्मे सुइरं उववज्जिऊण बहुवारं। अवमिच्चुमहादुक्खं तिव्वं पत्तोसि तं मित्तं॥२७॥ अर्थात् विष की वेदना, रक्तक्षय, भय, शस्त्र की चोट, संक्लेश तथा आहार और श्वासोच्छ्वास के निरोध से आयु क्षीण होती है। हिम, अग्नि, पानी, बहुत ऊँचे पर्वत अथवा वृक्षों के ऊपर चढ़ने और गिरने के समय होने वाले अंग-भंग से तथा रसविद्या के योग धारण और अनीति के नाना प्रसंगों से आयु क्षीण होती है। हे मित्र! इस प्रकार तिर्यञ्च और मनुष्य जन्म में चिरकाल तक अनेक बार उत्पन्न होकर तू अपमृत्यु के तीव्र महादु:ख को प्राप्त हुआ है। आधुनिक विज्ञान और अकालमरण आधुनिक विज्ञान ने ऐसे कई अविष्कार किये हैं, जिनसे असाध्य रोग भी साध्य हो गये हैं, शरीर का कोई अंग (हृदय, गुर्दा आदि) खराब होने पर बदला जा सकता है, रक्त अधिक बह जाने पर दूसरे व्यक्ति का रक्त भी चढ़ाया जा सकता है, इत्यादि उपचारों से अकालमरण की संभावनाएँ घट जाती हैं। परन्तु औद्योगिक उन्नति के कारण शहरों में प्रदूषण की मात्रा बढ़ने से प्रायः सभी की आयु निरंतर उदीरणा को प्राप्त हो जाती है। मनुष्यों की औसत आयु घट रही है। वैज्ञानिकों ने विविध परीक्षणों से यह सिद्ध भी किया है कि प्रदूषणमुक्त समुद्र में रहनेवाली मछलियाँ अधिक जीवी होती हैं, परन्तु प्रदूषणयुक्त समुद्र में वे जल्दी मरण को प्राप्त हो जाती हैं। वर्तमान समय में फल, सब्जी, दूध, अनाज, घी आदि भी मिलावटी और कृत्रिम रसायनों से मिश्रित आते हैं, हवा में जहरीली गैसों की मात्रा आवश्यकता से कहीं अधिक है, साँस की बीमारियाँ बढ़ रही हैं, शहरी व्यस्तताओं के कारण तनाव बढ़ रहा है इत्यादि कारणों से वृद्धावस्था एवं इन्द्रियों की शिथिलता कम उम्र में आती है और शीघ्र मरण हो जाता है। अतः आधुनिक विज्ञान भी अकालमरण के इस सिद्धांत से पूर्ण सहमत
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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