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________________ अनेकान्त 64/2, अप्रैल-जून 2011 संबन्धित विवेचन के लिए महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। ३. इष्टोपदेश- आचार्य पूज्यपाद द्वारा रचित संस्कृत भाषा की इस कृति में 51 श्लोकों के माध्यम से आत्मा की विशुद्धता, वीतरागता, अपरिग्रह और आचरण का वर्णन किया गया है। 79 ४. तत्त्वार्थवार्तिक तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ पर रचित यह महत्त्वपूर्ण टीका ग्रंथ है। इसके भाष्यकार आचार्य अकलंक हैं जो कि तर्क के प्रसिद्ध विद्वान् रहे हैं। नवम अध्याय में निर्जरा तत्त्व के वर्णन के अन्तर्गत सूत्र संख्या 27-44 तक ध्यान की चर्चा की गयी है। योग का वर्णन भी अनेक स्थानों पर किया गया है। ५. तत्त्वानुशासन तत्त्वानुशासन ग्रंथ के कर्ता आचार्य रामसेन हैं। इस ग्रंथ में 259 श्लोकों में ध्यान का वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ का दूसरा नाम ध्यानशास्त्र है। ज्ञानार्णव में वर्णित धर्मध्यान के भेद - पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत के नामों का उल्लेख यहां पर किया गया है। ६. ध्यानशतक इस ग्रंथ में मूलकर्त्ता का कोई निश्चय नहीं है। आचार्य हरिभद्र ने इस ग्रंथ की टीका करते हुए ध्यान शतक नाम दिया है। मूल ग्रंथ में ग्रंथ का नाम 'ध्यानाध्ययन' प्राप्त होता है। इसमें 105 गाथाओं के द्वारा ध्यान-योग की चर्चा की गयी. है। ७. आदिपुराण- आदिपुराण महापुराण का प्रथम खण्ड है। द्वितीय खण्ड उत्तरपुराण है आदिपुरण सैंतालीस पत्रों में पूर्ण हुआ है जिसमें बयालीस पर्व और तँतालीसवें पर्व के तीन श्लोक जिनसेनाचार्य द्वारा तथा अवशिष्ट पांच पर्व और उत्तरपुराण जिनसेनाचार्य के शिष्य गुणभद्राचार्य द्वारा रचित हैं। आदिपुराण के 21वें पर्व में 268 श्लोकों के द्वारा ध्यान की चर्चा की गयी है। ८. उपासकाध्ययन- यह ग्रंथ आचार्य सोमदेव सूरि कृत यशस्तिलक चम्पू का एक अंश है यशस्तिलक चम्पू के तीन आश्वासों छठवाँ सातवीं और आठवीं के 909 श्लोक इसके अन्तर्गत आते हैं। इसमें श्रावक के आचार का विस्तृत वर्णन है। , ९. अमितगति श्रावकाचार- प्रस्तुत ग्रंथ आचार्य अमितगति द्वितीय के द्वारा रचित है पन्द्रह परिच्छेदों में विभक्त इस ग्रंथ के चौदह परिच्छेदों में श्रावक के कर्त्तव्यों एवं पन्द्रहवें में ध्यान का निरूपण किया गया है। १०. ज्ञानसार - ज्ञानसार मुनि पद्मसिंह द्वारा रचित है। इनका समय काल वि. सं. है। प्रस्तुत ग्रंथ में 63 गाथाओं के द्वारा ज्ञान की चर्चा करते हुए ध्यान का संक्षिप्त वर्णन किया गया है। 1086 ११. योगसार- यह आचार्य हेमचन्द्र विरचित ध्यान योग का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। ग्रंथ का मुख्य विषय योग होने से इसका नाम योगशास्त्र भी सार्थक है। यह 12 प्रकाशों में विभक्त है। ज्ञानार्णव के पश्चात् रचा जाने वाला यह ग्रंथ ध्यान योग का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। इस पर ज्ञानार्णव का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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