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________________ अनेकान्त 64/2, अप्रैल-जून 2011 हुआ ध्यान रौद्रध्यान है। इसके भी चार कारण कहे गये हैं34- हिंसानंद, मृषानंद, चौर्यानंद और विषय-संरक्षणानंद। (३) धर्मध्यान धर्म से युक्त भाव को धर्म्य कहते हैं। धर्म्य से युक्त ध्यान को धर्मध्यान कहते हैं। रागद्वेष मूलक समस्त पर पदार्थो का त्याग करके श्रेयोमार्ग में स्थित साधक के द्वारा साम्यता के लिए ध्याया जाने वाला ध्यान धर्मध्यान है। धर्म ध्यान के चार भेद हैं- आज्ञा विचय, अपाय विचय, विपाक विचय और संस्थान विचय। संस्थान विचय धर्मध्यान के भी चार भेदों का उल्लेख ज्ञानार्णव में किया गया है पिण्डस्थं च पदस्थं च रूपस्थं रूपवर्जितं। चतुर्धा ध्यानमाम्नातं भव्यराजीव भास्करैः।।२८ (४) शुक्लध्यान यह ध्यान की चरमोत्कर्ष अवस्था है। एकाग्रता और निरोध यहीं पूर्णता को प्राप्त होते हैं। ज्ञानार्णवकार शुक्ल ध्यान का स्वरूप वर्णित करते हुए कहते हैं कि निष्क्रिय करणातीतं ध्यान धारणा वर्जितम्। अन्तर्मुखं च यच्चित्तं तच्छुक्लमिति पठ्यते॥३९ अर्थात् निष्क्रिय, इन्द्रियातीत, ध्यान और धारणा से रहित आत्मा की अन्तर्मुखी प्रवृत्ति को शुक्लध्यान कहते हैं। यह आत्मा की अत्यन्त विशुद्ध अवस्था है। कषाय के क्षय या उपशम से शुक्लध्यान की प्राप्ति होती है। इसकी चार श्रेणियाँ है।- पृथक्त्ववितर्कवीचार, एकत्ववितर्कवीचार, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती और व्युपरतक्रियानिवृत्ति अथवा समुच्छिन्न क्रियानिवृत्ति। ध्यान का फल आर्त्त और रौद्र ध्यान संसार दु:खों के कारण हैं एवं धर्मध्यान परंपरा से तथा शुक्लध्यान साक्षात् मोक्ष का हेतु है। इस प्रकार ध्यान का समीचीन मार्गदर्शन ग्रंथकार द्वारा किया गया है। पञ्चम अध्याय जैन परंपरा ध्यान-योग संबंधी साहित्य से समृद्ध है। अनेक आचार्यों द्वारा इस विषय पर अपने अपने मत प्रस्तुत किये गये हैं। यथा १. मोक्षपाहुड - इस ग्रंथ के प्रणेता आचार्य कुन्दकुन्द (ईसा की प्रथम सदी) हैं। 106 गाथाओं के माध्यम से इसमें ध्यान योग का वर्णन किया गया है। योग के सात अंगों - यम, नियम, आसन, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का इसमें स्फुटरूप से वर्णन २. समाधितंत्र- आचार्य पूज्यपाद द्वारा रचित इस कृति में 105 श्लोक हैं। संस्कृत की यह कृति आत्म विवेचन को ध्यान में रखकर रची गयी है। अतः ध्यान-योग से
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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