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________________ अनेकान्त 64/2, अप्रैल-जून 2011 कषायों की शांति का हेतु है। अनुप्रेक्षा को ही भावना कहते हैं। ज्ञानार्णव में बारह भावनाओं का वर्णन है। अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आम्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म। रत्नत्रय सम्यक् श्रद्धा, ज्ञान और आचरण ही योग का आधार है। रत्नत्रय के अभाव में ध्यान-योग को ज्ञानार्णव में कल्पना मात्र कहा गया है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की एकता रत्नत्रय है और यह ही मोक्षमार्ग है। जीवादि सात तत्त्वों का श्रद्धान सम्यग्दर्शन, विधिवत् जानना सम्यग्ज्ञान एवं अनुभूति सम्यक्चारित्र है। सम्यक्चारित्र के अन्तर्गत ही पंचमहाव्रत, पंचसमिति, त्रिगुप्ति, आसनजय, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान की प्रक्रिया आते हैं। पंचमहाव्रत संयम पालन एवं पापों से निवृत्ति हेतु हिंसादि पाँच पापों का सकलदेश त्याग करना महाव्रत कहलाता है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यह पांच महाव्रत त्रिगुप्ति मन, वचन और काय की प्रवृत्ति को अच्छी प्रकार से रोकना गुप्ति कहलाता है। मन को कषायों से निवृत्त करना मनोगुप्ति, वचन रूप प्रवृत्ति रोककर मौन धारण करना वचन गुप्ति और परिषह आदि के आने पर भी एकासन में शरीर को स्थित रखना काय गुप्ति है। आसनजब आसन के द्वारा संकल्प शक्ति को विकसित करके इच्छित फल प्राप्त किये जा सकते हैं। अतः ध्यान के लिए आसन का विशेष महत्त्व है।' आसन की सिद्धि का मुख्य आधार स्थान होता है। अतः ज्ञानार्णवकार ने ध्यान योग्य स्थानों का विस्तृत वर्णन किया है। पर्यकासन, अर्धपर्यकासन, वज्रासन, वीरासन, सुखासन, कमलासन और कायोत्सर्गासन ये ध्यान के योग्य आसन कहे गये हैं।। प्राणायाम आसन से कायिक नियंत्रण प्राप्त करके मानसिक नियंत्रण हेतु प्राणायाम का उल्लेख किया गया है। वायु को प्राण तथा प्राण के विस्तृत करने को आयाम कहते हैं। पूरक, कुम्भक और रेचक ये तीन प्राणायाम के भेद कहे गये हैं। ब्रह्मरन्ध्र से वायु को खींचकर अपनी इच्छानुसार अपने शरीर में पूरण करना पूरक', प्राणवायु को स्थिर करके नाभिकमल के भीतर घड़े के आकार में दृढ़ता पूर्वक रोकना कुम्भक और प्राणवायु को प्रयत्नपूर्वक बाहर निकालना रेचक' प्राणायाम है। प्राणायाम के वर्णन के उपरांत आचार्य शुभचन्द्र ने इसे हेय भी कहा है।16
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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