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________________ 6A अनेकान्त 64/2, अप्रैल-जून 2011 17. जिणवयण मोसहमिणं विसयसुहविरेयणं अमियभूयं। जरमरण बाहि हरणं खयकरणं सव्व दुक्खाणं।। मूलाचार 18. जयधवला 1/341 19. गोम्मटसार जीवकाण्ड 316 20. गोम्मटसार जीवकाण्ड 348 21. आठ करोड एक लाख आठ हजार एक सौ पचहत्तर अंग बाह्य के अक्षरों का प्रमाण है। 22. द्वादशांग के समस्त पद एक सौ बारह करोड़ बयालीस लाख अट्ठावन हजार पांच होते हैं। 23. सर्वार्थसिद्धि पृष्ठ 206 24. तत्त्वार्थवार्तिक 1/20/5 25. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 26. श्लोकवार्तिक 3/1/9/33/27 27. श्लोकवार्तिक 3/1/0/32/26/20 28. कसायपाहुड 1/1/1 29. तत्त्वार्थवार्तिक 1/20/10-12 30. वही 1/20/18 31. प्रवचनसार गाथा 26 जयसेनाचार्य कृत टीका पृष्ठ 46 32. तत्त्वार्थवृत्ति सुखबोधिनी 33. गोम्मटसार जीवकाण्ड 355 34. तत्त्वार्थवार्तिक 20/15 पृष्ठ 211-12 (अनुमानादीनां पृथगनुपदेशः श्रुतावरोधात्) 35. विशेषेण तर्कणमूहनं वितर्कः श्रुतज्ञानमित्यर्थः। तत्त्वार्थवार्तिक 9/43 भाष्य ***** -एसोसियट प्रोफेसर संस्कृत विभाग, दि. जैन कॉलेज, बड़ौत-250611 (उत्तरप्रदेश)
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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