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________________ श्रावकाचार संग्रह में सामायिक, प्रतिक्रमण स्वरूप, विधि तथा महत्त्व - डॉ. शीतल चन्द जैन जैनदर्शन की विशुद्ध साधना पद्धति में सामायिक का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसको धारण किये बिना कोई भी व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकता है। श्रावकाचार संग्रह में सामायिक की विवेचना शिक्षाव्रत एवं तीसरी प्रतिमा को ध्यान में रख कर के की गई है। सभी श्रावकाचारों में शिक्षाव्रत को एवं सामायिक को स्वीकार किया गया है। प्रस्तुत आलेख में सर्वप्रथम शिक्षाव्रत के स्वरूप पर विचार करते हैं। सामायिक का समय पूर्ण होने तक हिंसादि पाँचों पापों का पूर्ण रूप से अर्थात् मन-वचन-काय और कृत, कारित, अनुमोदना से त्याग करने को सामायिक शिक्षाव्रत कहा गया है। जिस प्रकार तीसरी प्रतिमाधारी श्रावक को कम से कम दो घड़ी और अधिक से अधिक छह घड़ी सामायिक का निर्देश किया गया है उस प्रकार का बंधन सामायिक शिक्षाव्रत के अभ्यास करने वाले गृहस्थ के लिये नहीं है। गृहस्थ सामायिक का अभ्यास धीरे-धीरे अल्पकाल से प्रारंभ करता है और उत्तरोत्तर समय को बढ़ाता है। उसका मुख्य लक्ष्य आर्त और रौद्र ध्यान से तथा संक्लेशभाव से बचकर आत्मा में स्थिर होने का है। प्रारंभिक अभ्यासी को जब तक किसी प्रकार की आकुलता नहीं होती है, तभी तक वह सामायिक में स्थिर होकर बैठ सकता है। सामायिक प्रारंभ करने के पूर्व वह शिर-केश चोटी आदि की गाँठ लगाता है। पहिने और ओढ़े हुए वस्त्र की गाँठ लगाता है। जिसका भाव यह है कि सामायिक करते समय वायु से उड़कर ये मन को व्याकुल न करें। सामायिक में बैठे हुए पद्मासन में हाथों की मुट्ठी को बाँधना है अर्थात् दाहिनी हथेली को बांई हथेली के ऊपर रखता है तथा कभी खड़े होकर भी सामायिक करता है। इन सबमें यही भाव निहित है कि जब तक मुझे बैठने या खड़े रहने में आकुलता नहीं होगी, तब तक मैं सामायिक करूँगा। इस प्रकार जब तक मेरे केशबंध आदि रहेंगे, तब तक मैं सामायिक करूँगा, ऐसी मर्यादा को सामायिक का काल जानना चाहिए। जहाँ पर चित्त में विक्षोभ उत्पन्न न हो ऐसे एकान्त स्थान में, वनों में, वसतिकाओं में अथवा चैत्यालयों में प्रसन्न चित्त में सामायिक की वृद्धि करना चाहिए। उपवास अथवा एकाशन के दिन गृहव्यापार और उनकी व्यग्रता को दूर करके अन्तरात्मा में उत्पन्न होने वाले विकल्पों की निवृत्ति के साथ सामायिक अनुष्ठान प्रारंभ करें। पुनः आलस्य रहित होकर सावधानी के साथ पांचों व्रतों की पूर्णता करने के कारणभूत सामायिक का प्रतिदिन अभ्यास बढ़ाना
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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