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________________ अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010 यद्यपि मुख्तार साहब द्वारा लिखित सभी संस्कृत एवं हिन्दी कविताएं अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं समसामयिक हैं तथापि इन सबमें भी उनके द्वारा हिन्दी भाषा में लिखित 'मेरी भावना' नामक कविता अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं सर्वोपरि है। मात्र ग्यारह पद्यों में लिखी गई 'मेरी भावना' नामक कविता उनकी एक कालजयी रचना है, जो सर्वप्रथम जैन हितैषी के सन् 1916 के अप्रैल-मई के संयुक्तांक में प्रकाशित हुई थी। इसके अनेक देशी एवं विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। मेरी भावना में आगमिक सिद्धांतों का संक्षेप में गहरा रहस्य छुपा हुआ है। वर्तमान में प्रकाशित कोई भी ऐसा जिनवाणी संग्रह नहीं मिलेगा जिसमें मुख्तार जी द्वारा रचित मेरी भावना को स्थान न दिया गया हो। यद्यपि आचार्य जुगलकिशोर जी कृत मेरी भावना शीर्षक को आधार बनाकर अनेक विद्वानों ने मेरी भावना शीर्षक से ही अनेक रचनाएं लिखी हैं, किन्तू जो आदर और स्नेह श्री मुख्तार जी कृत मेरी भावना को मिला है, वह समान शीर्षक वाली ही अन्य किसी रचना को अद्यावधि नहीं मिल सका है। 'मेरी भावना' मुख से निकलते ही श्री मुख्तार कृत मेरी भावना का ही सर्वप्रथम स्मरण होता है। आबाल-वृद्ध से लेकर महिला समूह के द्वारा भी धार्मिक कार्यक्रमों में, दैनिक जीवन में मेरी भावना का पाठ किया जाता है। अब तो स्थिति यह है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में गांधी जयंती के अवसर पर आयोजित सर्वधर्म सम्मेलन की प्रार्थना में 'मेरी भावना' को जैन प्रार्थना के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। समाधिमरण लेने वाले व्यक्ति को भी अन्त समय में मेरी भावना सुनाई जाती है। और तो और किसी बड़े राजनेता का स्वर्गवास होता है तो उस अवसर पर भी सर्वधर्म प्रार्थना में जैनों की ओर से मेरी भावना का पाठ किया जाता है। श्री मुख्तारजी कृत मेरी भावना के संदर्भ में इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि सतसैया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर। देखन में छोटे लगें, घाव करै गम्भीर॥ सभाओं एवं संगोष्ठियों में मंगलाचरण के रूप में मेरी भावना के कुछ अंशों का पाठ किया जाता है, क्योंकि इसमें प्राणिमात्र के सुखी होने की कामना की गई है। मेरी भावना की लोकप्रियता का जीता जागता उदाहरण यह है कि- डॉ. प्रेमचन्द रांवका की एक सूचना के अनुसार राजस्थान विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में श्रीमद् भगवद्गीता के साथ मेरी भावना का भी वितरण दीक्षार्थियों को किया गया था। पत्र-पत्रिकाओं का संपादन : श्री मुख्तार साहब संपादन कला में अत्यन्त दक्ष थे और यही कारण था कि जुलाई सन् 1900 में आपको महासभा के साप्ताहिक मुखपत्र 'जैन गजट' का संपादक नियुक्त किया गया था और 31 दिसम्बर सन् 1909 तक आप इसके संपादन का दायित्व सम्हाले रहे। इस अवधि में उन्होंने अत्यन्त कुशलता के साथ जैन गजट का संपादन किया था। अक्टूबर, सन् 1909 में श्री मुख्तार साहब को जैन हितैषी का संपादक नियुक्त किया गया और दो वर्षों तक उन्होंने इस दायित्व का निर्वहन किया। पुनः नवम्बर, सन् 1929
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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