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________________ अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010 87 अनेक ग्रंथों का संपादन किया है, वहीं विस्तृत भूमिकाओं अथवा प्रस्तावनाओं के माध्यम से ग्रंथ और ग्रंथकार पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। साथ यही ग्रंथ के प्रारंभ, मध्य अथवा अन्त में उल्लिखित प्राचीन आचार्यों, कवियों, शासकों या उनके उद्धरणों अथवा दूसरे ग्रंथों या शिलालेखों में प्राप्त तथ्यों या सिद्धांतों के आधार पर आचार्यों के काल निर्धारण में जो सयुक्तिक मापदण्डों को प्रस्तुत किया है, वह उनके अगाध पाण्डित्य, चिन्तन-मनन एवं शोध खोज का निदर्शन है। श्री मुख्तार साहब द्वारा लिखित, संपादित एवं अनूदित कृतियों की संख्या लगभग तीन दर्शन से अधिक हैं। ये कृतियां विविधि विषयों से परिपूर्ण हैं। हम उनके कृतित्व को सात भागों में विभाजित कर सकते हैं- 1.भाष्य ग्रंथ 2.परीक्षा ग्रंथ, 3.ऐतिहासिक निबन्ध , 4.प्रस्तावना, 5.संस्कृत हिन्दी कविताएँ, 6.पत्र-पत्रिकाओं का संपादन एवं 7.स्फुट साहित्य। १.भाष्य ग्रन्थ : पं. जुगलकिशोर मुख्तार साहब आचार्य समन्तभद्र के अनन्य भक्त थे। इसलिये उन्होंने आचार्य समन्तभद्र के द्वारा लिखित ग्रंथों पर विस्तृत हिन्दी भाष्य लिखे हैं और उनके ग्रंथों के मर्म को जिस श्रद्धा और भक्ति के साथ उद्घाटित किया है, वह बेजोड़ है। समन्तभद्रीय ग्रंथों का भाष्य लिखते समय श्री मुख्तार साहब ने कोरा पाण्डित्य प्रदर्शन नहीं किया है, अपितु उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति को भी प्रकट किया है, जिससे आचार्य समन्तभद्र के प्रति उनका विशेष अनुराग प्रतीत होता है। आचार्य समन्तभद्र के जिन ग्रंथों पर पं. जुगलकिशोर मुख्तार साहब ने भाष्य लिखे हैं, उनमें समीचीन धर्मशास्त्र (रत्नकरण्ड श्रावकाचार), स्वयम्भूस्तोत्र, युक्त्यनुशासन और आप्तमीमांसा अपरनाम देवागम स्तोत्र प्रमुख हैं। उनके द्वारा हिन्दी में लिखे गये ये भाष्य मूल के अनुकूल तो हैं ही, साथ ही मूल श्लोक अथवा कारिका के मर्म को प्रकट करने वाले हैं, मुख्तार साहब ने सर्वप्रथम श्लोक का अर्थ लिखा है। इस अर्थ की विशेषता यह है कि इसमें मोटे टाइप में तो शब्दार्थ दिया है। साथ ही उस अर्थ की संगति बैठाने के लिए छोटे टाइप हैं। प्रत्येक शब्द का विशेष अभिप्राय प्रकट किया है। इतना ही नहीं, आवश्यकतानुसार मध्य-मध्य में कोष्ठकों के माध्यम से शब्द के निहितार्थ को समझाने का भरसक प्रयास किया है। तदनन्तर उस श्लोक या कारिका का पूर्वापर संबन्ध स्थापित करते हुये भाष्य लिखा है। इस भाष्य की विशेषता यह है कि यदि कोई परिभाषिक शब्द पहले किसी अन्य अर्थ में प्रयुक्त था और बाद में देश-काल के कारण उसका अर्थ विकृत हो गया है तो मुख्तार साहब ने अर्थ करते समय/भाष्य लिखते समय उस देश और उस काल को ध्यान में रखकर वास्तविक मन्तव्य प्रकट किया है, जिससे तत्कालीन अर्थ का यही द्योतन होता है। इस अर्थ की पुष्टि के लिये उन्होंने अन्य ग्रंथों अथवा समकालीन आचार्यों के ग्रंथ संदर्भ प्रस्तुत कर अपनी बात को प्रामाणिक रूप में स्पष्ट किया है। यह स्थिति केवल आचार्य समन्तभद्र के ग्रंथों पर लिखे गये भाष्यों की ही नहीं है, अपितु पं. जुगलकिशोर मुख्तार जी ने अन्य जिन-जिन आचार्यों के ग्रंथों पर भाष्य लिखे हैं, उनमें भी इसी पद्धति को अपनाया है।
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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