SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010 जैन परंपरा ने आगे चलकर जन्मना जाति प्रथा और हिंसा के विकृततम रूप ध र्म के नाम पर पशुबलि का विरोध किया था। वहीं गाँधी ने समूचे विश्व में अहिंसा का प्रचार किया। आचार्य समन्तभद्र ने जैन शास्त्रों के अनुकूल ही सर्वोदय तीर्थ का प्रतिपादन किया। वहाँ गाँधी ने केवल अपने धर्म के प्रति श्रद्धा और निष्ठा व्यक्त करते हुए भी सर्व धर्म समभाव की भावना को आगे बढ़ाया। अनेकांत विचार के अनुसार यह कहना कि केवल हमारा धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है शायद समीचीन नहीं होगा। इसीलिए आज गाँधी ने अहिंसा को वैश्विक और सर्व धर्मावलम्बी बनाकर अनेकांतवाद को ही सशक्त किया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है। अनेकांत केवल शब्द नहीं भावना का नाम है। ___- पूर्व कुलपति एवं संसद सदस्य 104, सान्याल एन्कलेव, बुद्ध मार्ग, पटना-800001 (बिहार)
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy