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________________ अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010 पर्यावरण संरक्षण में आध्यात्मिक सिद्धान्तो की भूमिका - सुरेश जैन, आई.ए.एस. १. पर्यावरण संरक्षण के लिए अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर किए जा रहे अनेक सफल प्रयत्नों के बावजूद भी हमारी पृथ्वी का पर्यावरण और वातावरण प्रदूषित हो रहा है। पर्यावरण संरक्षण में धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक परम्पराओं का अत्यधिक योगदान है। अतः वैज्ञानिक कृत्यों के साथ- साथ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आधार पर पर्यावरण संबन्धी सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार एवं विवेकपूर्ण प्राचीन मान्यताओं को पुनर्जीवित करना आवश्यक है। जैन धर्म पर्यावरण के संरक्षण एवं पोषण के लिए विरली किन्तु ठोस सैद्धान्तिक शक्तिपीठ प्रदान करता है। २. जैन संस्कृति अहिंसा पर आधारित है। अहिंसा आण्विक युद्ध के लिए भी प्रभावी कवच प्रदान करती है। अहिंसा के बिना किसी भी प्राणी का अस्तित्व बनाए रखना संभव नहीं है। जैन संस्कृति ने पर्यावरण के सभी घटकों पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, वनस्पति कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षी एवं मानवीय समाज के संरक्षण के लिए असाधारण एवं अद्भुत प्रावधान किए हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए भगवान महावीर ने 2500 वर्ष पूर्व जिओ और जीने दो, परस्परोग्रहो जीवानाम् एवं जीवाणं रक्खणो धम्मो के शाश्वत सिद्धान्तों का पालन, प्रचार एवं प्रसार किया है। ३. जैन धर्म प्रकृति और मानवीय जीवन के बीच अद्भुत साम्य की घोषणा करते हुए यह स्थापित करता है कि प्रकृति और प्राणी चेतन है। दोनों जन्म लेते हैं, भोजन करते हैं, बढ़ते हैं और छिन्न-भिन्न होने पर दुखी होते हैं। ४. अपरिग्रह जैन धर्म का मूलभूत सिद्धांत है। यह सिद्धांत अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रत्येक मानव को अपनी इच्छाओं को कम से कम करने एवं न्यूनतम वस्तुओं का उपयोग और उपभोग करने की प्रभावी सीख देता है। इन व्यावहारिक सिद्धांतों को पालन करते हुए हम अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह न करें। हमें यदि दातुन के लिए एक छोटी सी टहनी की आवश्यकता है तो हम बड़ी मोटी डाली न तोड़ें। कम से कम पानी उपयोग करें। कम से कम कागज का उपयोग करें। इस प्रकार हम प्रत्येक क्षेत्र में संयमित एवं मितव्ययी जीवन जिए। जैन संस्कृति ने आहार भोजन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण अवदान प्रदान किया है। जैन धर्म शाकाहार को उपादेय और मांसाहार को हेय मानता है। मांसाहार के लिए पशु पक्षियों का हनन किया जाता है। जबकि पशु-पक्षी पर्यावरण संरक्षण के आधारभूत घटक हैं। परिणामतः शाकाहारी भोजन का पर्यावरण संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान है। ६. जैन धर्म ने पर्यावरण संरक्षण को अत्यधिक महत्त्व दिया है। प्रथम जिन तीर्थकर भगवान ऋषभदेव ने प्राचीन भारत में पर्यावरण संरक्षण और जैविक संतुलन बनाये रखने के लिए सशक्त सिद्धांतों की स्थापना की थी, जो आज भी उपयोगी और प्रभावी है।
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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