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अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010
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न चाहमेतं तथियऽन्ति ब्रूमि
सुत्रनिपात सव्वमत्थी तिखो कच्चान अयमेको अन्तो,
संयुत निकाल पालि भाग - 3 44.1 (अव्याकृत संयुत) मज्झिमनिकाय भाग - 2, 49.1 (सुमसुतं )
50, 5
संयुक्तनिकाय, भाग-2, 12:15
आचारांग, 1/4/2
भिक्खु विभवाय च वियागरेज्जां सूत्रकृतांगसूत्र 1/1/14/22 अनेकान्त स्यादवाद और सप्तभंगी, डॉ. सागरमल जैन, पृ.21
भगवती सूत्र, भाग 4,
9/33/34
भगवती सूत्र, भाग 4,
9/33/34
भगवती सूत्र, भाग 3,
7/3/5
भगवती सूत्र, भाग 5,
13/7/13, 14
" जैन दर्शन में नय की अवधारणा" की प्रस्तावना, सुव्रतमुनि शास्त्री अनेकान्त है तीसरा नेत्र महाप्रज्ञजी, पृ.66
विधिनिषेधश्च कथचितदिदी विवक्षया मुख्य गुण व्यवस्था...स्वयंभूस्जोत्र, का. अनेकान्त है तीसरा नेत्र आचार्य महाप्रज्ञजी, पृ.46
अनेकान्त, स्याद्वाद और सप्तभंगी, डॉ. सागरमल जैन, पृ. 8
स्यादवाद और सप्तभंगी, डॉ. भिखारीराम यादव, पृ. 36,37
तत्र यदेव तत्त्वातत् यदैवैकं तदेवानेकं यदेव सत्तदेवासवदेव नित्यंतदेवात्यिमित्येववस्तु ।
- समयसार, गा. 247 की टीका
स्याद्वाद और सप्तभंगी नय, डॉ. भिखारीराम यादव, पृ. 38
अनेकान्त, स्याद्वाद और सप्तभंगी, डॉ. सागरमल जैन, पृ. 11 भावस्स णत्थि णासो णात्थि भावस्स चैव उत्पादो।
अनेकान्तवाद, स्याद्वाद और सप्तभंगी,
दत्वं पज्जविउयं दव्व विउता या पज्जवात्थि,
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गुणपज्जयेसु भावा उप्तपादवए पकुव्वंति ।। पंचास्तिकाय, गा. 15 कीदृश वस्तु ? नाना धर्मेयुक्तं विविधस्वभाव......स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा टीका,
गा. 253
.. डॉ. सागरमल जैन, पृ. 10
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अप्पाय - ठिव-भंगा हंदि दवियलक्कखणं एवं......सन्मतिप्रकरण, 1 / 12
गोयमा । जीवा सिय सासया सिय असासया