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________________ अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010 87 पांच इन्द्रियाँ, निद्रा और प्रणय इन प्रमादों के कारण चारित्र और ध्यान में शुद्धता, स्थिरता नहीं होती है। प्रमत्त संयत गुणस्थान में मुनि धर्म ध्यान का चिंतवन करते हैं परंतु नोकषाय के उदय होने से उनके आर्तध्यान भी हो जाता है। फिरभी रत्नत्रय की साधना एवं स्वाध्याय के कारण वे उस आर्तध्यान का उपशम कर देते है। निदान नाम का आर्तध्यान इस अवस्था में नहीं होता यदि होता है तो गुणस्थान से पतन हो जाता है। प्रमाद की अवस्था में जब तक निश्चल ध्यान नहीं होता तब तक वे मुनि अपनी निन्दा करते रहते हैं। ७. अप्रमत्त संयत गुणस्थान में धर्म थ्यान प्रमाद रहित अवस्था अप्रमत्त है संयत के साथ जिन जीवों के प्रमाद नहीं पाया जाता वे ध्यान में स्थित रहते हैं और उपशम अथवा क्षपक श्रेणी के सन्मुख है वह अप्रमत्त संयत इस गुणस्थान में औपशमिक भाव, क्षायिक भाव और क्षायोपशमिक तीनों भावों के साथ नियम से धर्मध्यान होता है। ___ अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में जब संज्वलन और नोकषायों का मन्द उदय होता है उस समय वह साधु बाहर से निरतिचार सकलचारित्र के धारक होते हैं और अंतरंग में किसी एक सम्यक्त्व के साथ रूपातीत धर्म ध्यान में स्थित इन्द्रियों के विषय एवं तीव्र संज्वलन कषाय के विजेता होते हैं। इस गुणस्थान का काल अन्तर्मुहूर्त होने से साधक छठे सातवें गुणस्थान में प्रवर्तन करते रहते हैं। इस गुणस्थान को ध्यान, ध्याता, ध्येय और ध्यान का फल इन चार अधिकारों में वर्णित किया है। ध्यान- चित्त का निरोध करना ध्यान है अर्थात् चित्त से अन्य चिंतनों का त्याग कर किसी एक पदार्थ का चिंतवन ध्यान है। उसके चार भेद हैं। 1. पिण्डस्थ 2. पदस्थ 3. रूपस्थ 4. रूपातीत4 ध्याता-ध्यान को करने वाला ध्याता होता है। जो आत्मा और परमात्मा को साधता है वह साधु है। जो साधु चेतनादि भावों से उपयुक्त होकर अपने आत्मा को ध्याता है उस अनुभव को संवेदन कहते हैं। जो स्वयं होते अर्थात् अपने आप को जाने उसे चेतना कहते हैं। संवेदन और चेतना संवेदनचेतनादि कहलाते है। ऐसे संवेदनचेतनादि गुणों से युक्त आत्मा ध्याता है। ध्येय- जिसका ध्यान किया जाता है वह ध्येय है। ध्येय तीन प्रकार का है - 1. अक्षर 2. रूप 3. रूपातीत अक्षर- पंचपरमेष्ठी के वाचक अक्षरों का उच्चारण अक्षर ध्यान कहलाता है।
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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