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________________ अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010 अध्यात्म विकास के आयाम गुणस्थान और परिणाम डॉ. ज्योतिबाबू जैन गुणस्थान एवं ध्यान : गुणस्थान का संबंध गुण से है सहभुवो गुणा' साथ में होने वाले गुण है या जिनके द्वारा एक द्रव्य की दूसरे द्रव्य से पृथक् पहचान होती है वह गुण है गुण्यते पृथक्क्रियते द्रव्यं द्रव्याद्यैस्ते गुणाः। । अर्थात् जिसके द्वारा द्रव्य की पहचान होती है वह गुण है जो द्रव्य की संपूर्ण अवस्थाओं में पाये जाने वाले गुण है। अनेक मिली हुई वस्तुओं में किसी एक वस्तु को पृथक् करने वाले हेतु को लक्षण (गुण) कहते हैं।' शक्ति, लक्षण, विशेष, धर्म, गुण, स्वभाव प्रकृति और शील ये शब्द एकार्थवाची हैं।' इस प्रकार गुण शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थो में भिन्नता है। ध्यान या परिणाम की अवस्था गुणस्थान है- जैसे-जैसे ध्यान में एकाग्रता के साथ विशुद्धि बढ़ती जाती है वैसे-वैसे गुणों के स्थान बढ़ते जाते हैं। अर्थात् आत्मा के उदयादि परिणामों की गुणात्मक अवस्था, दशा अथवा स्थान को गुणस्थान कहते हैं। गुणस्थान से शून्य अथवा ध्यान से शून्य अवस्था कभी किसी जीव की नहीं होती वह किसी न किसी ध्यान के साथ गुणस्थान में रहता है संसार में जीव मोहनीय कर्म के उदय उपशम आदि अवस्थाओं के अनुसार उत्पन्न हुये ध्यान रूप परिणामों, भावों या अवस्थाओं को गुणस्थान कहते हैं। जेहि दु लक्खिज्जते उदयादिसु संभवेहि भावेहि। जीवा ते गुण-सण्णा णिहिट्ठा, सव्वदरिसीहि॥६ आचार्य देवसेन ने भाव संग्रह में औदयिक, पारिणामिक, क्षायोपशमिक, औपशमिक और क्षायिक भावों के साथ शुभ-अशुभ शुद्ध भावों का योग निर्दिष्ट किया है। ये शुभ-अशुभ और शुद्ध भाव कर्मों के उदय, उपशम, क्षयोपशम होने पर जिन अवस्थाओं को प्राप्त होते हैं उन परिणामों की अवस्थायें ही चौदह गुणस्थान हैं। जो जीव कर्मों को नष्ट कर गुणास्थानातीत हो जाते हैं वे सिद्ध या मुक्त जीव हैं।' १. मिथ्यात्व गुणस्थान मिथ्यात्व कर्म के उदय से जिन जीवों के औदयिक भावों का उदय होता है वे सभी जीव मिथ्यात्व गुणस्थान में स्थित हैं, मिथ्यात्व कर्म के उदय से इन जीवों के परिणाम
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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