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________________ 58 अनेकान्त 63/4 अक्टूबर-दिसम्बर 2010 "दाणं पूया मुक्ख सावयधम्मे पण सावया तेण विणा" अर्थात् दान एवं पूजा श्रावक के मुख्य धर्म हैं, इनके बिना श्रावक धर्म की कल्पना नहीं की जा सकती। 10 श्रावक के षट् आवश्यकों में दान को प्रमुख स्थान दिया गया है। आचार्य पद्मनंदी ने पंचविंशतिका में स्पष्ट रूप से लिखा है कि "देशव्रती श्रावक के जीवन में प्रतिदिन जिन पूजनादि बहुत से कार्यों के होने के बाद भी सत्पात्र दान उसका महान् गुण है। उन्होंने दान को परंपरा से मोक्ष का कारण भी माना है । " पद्मपुराणकार आचार्य रविषेण ने लिखा है। कि- "जीवितान्मरणं श्रेष्ठं बिना दानेन देहिनाम्" अर्थात् प्राणियों के दान रहित जीवन से मरण श्रेष्ठ है। 2 आचार्य जिनसेन ने हरिवंश पुराण में भगवान् ऋषभदेव को आहार दान देने के कारण हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस ने "दान तीर्थंकर" का पद प्राप्त किया। उनके इस महान् कार्य के कारण ही षट्खंडाधिपति भरत चक्रवर्ती ने आकर राजा श्रेयांस की पूजा ( सम्मान) की। * 14 कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा ग्रंथ में स्वामिकुमार धनिकों के लिए दान की प्रेरणा देते हुए लिखते हैं कि "जो सम्पत्ति का संग्रह कर न तो उसका उपभोग करता है और न ही सत्पात्रों को दान देता है, वह बहुत बड़ी आत्मवंचना करता है, उसका मनुष्यत्व निष्फल है जो पुरुष परिश्रमपूर्वक धन अर्जित करके उसे धरती के नीचे गाड़कर रखते हैं, वे अपनी संपत्ति को पाषाण के समान बना रहे हैं। 5 प्रश्नोत्तर श्रावकाचार में आचार्य सकलकीर्ति ने गृहस्थ जीवन में दान का महत्त्व स्पष्ट करते हुए लिखा है कि- " जिस गृहस्थाश्रम में दान नहीं दिया जाता वह गृहस्थाश्रम पत्थर की नाव के समान समझना चाहिए" ऐसे गृहस्थाश्रम में रहकर मूर्ख लोग अत्यन्त अथाह संसार रूपी महासागर में डूब जाते हैं। " मुनियों के लिए दिये जाने वाले आहार दान का अतिशय महत्त्व बतलाते हुए आचार्य सकलकीर्ति ने लिखा है कि “मुनिपादोदकेनैव यस्यगेहं पवित्रितम् । नैव श्मशानतुल्यं हि तस्यागारं बुधैः स्मृतम् ॥” अर्थात् जिनका घर मुनियों के चरण कमलों के जल से पवित्र नहीं हुआ है उनका घर श्मशान के समान है ऐसा विद्वान् लोग मानते हैं। " आचार्य पद्मनंदी पात्र दान की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए लिखते हैं “सूनोर्मृतेरपि दिनं न सतस्तथा स्याद्बाधाकरम्, यथामुनिदानशून्यम्" अर्थात् सज्जन पुरुष के लिए अपने पुत्र की मृत्यु का दिन भी उतना बाधक नहीं होता जितना मुनि दान से रहित दिन उसके लिए बाधक होता है।" दान के अभाव में धार्मिकता मात्र दिखावा है आचार्य पद्मनंदी जी पद्मनंदी पंचविंशतिका में लिखते हैं- " जो मनुष्य धन के रहने पर भी दान में उत्सुक तो नहीं होता, परन्तु अपनी धार्मिकता को प्रकट करता है उसके
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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