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________________ अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010 गुण छत्तिस पच्चिस आठ बीस, भव-तारन तरन जिहाज ईस। गुरु की महिमा वरनी न जाय,गरु नामजपो मन वचन काय॥७॥ कविवर द्यानतराय जी का मत है कि अपनी शक्ति के अनुसार देव, शास्त्र और गुरु की पूजन, भक्ति, ध्यान, जाप मरण आदि दोषों से दूर करके अजर-अमर पद-मोक्ष को प्राप्त कराता है। जिन परंपरा में रत्नत्रयप्रदाता- सत्यार्थ देव, शास्त्र और गुरु- में तीन शुभ रत्न जैन पूजा- विधान के निमित्त या आधार हैं। प्रत्येक गृहस्थ को प्रतिदिन देव शास्त्र और गुरु जो समीचीन हो, का पूजन-भक्ति कर आत्मा को पवित्र करना चाहिए। सच्चे देव की श्रेणी में संपूर्ण वीतराग परम देवों का अन्तर्भाव हो जाता है। अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, जिनधर्म, जिनवाणी, चैत्य, जिन चैत्यालय- इन देवों की गणना परम देवों में की जाती है। संदर्भ 1. पद्मनन्दि पंचविंशतिका, 403 2. सर्वार्थसिद्धि अध्याय 6 सूत्र 24 3. वसुनंदि श्रावकाचार गाथा 456-458, जैनेन्द्र सिद्धांत कोश भग 3, पृ. 65 भगवती आराधना वि. 46/159/21, जैनेन्द्र सिद्धांत कोश भाग 3, पृ. 64 5. रत्नकरण्डक श्रावकाचार श्लोक 5, आचार्य समन्तभद्र स्वामी 6. बोधपाहुड गाथा 24,25- आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी 7. रमण मंजूषा आचार्य विद्यासागर पद्यानुवाद छन्द संख्या 5 8. णमोकारमंत्र पूजन आर्यिका ज्ञानमतिमाता जी 9. रत्नकरण्डक श्रावकाचार गाथा 6 (आ. समन्तभद्र स्वामी) 10. रत्नकरण्डक श्रावकाचार गाथा 9 (आ. समन्तभद्र स्वामी) 11. रयणमंजूषा- आचार्य विद्यासागर (पद्यानुवाद) छन्द सं. 9 12. देव, शास्त्र, गुरु (समुच्चय) पूजा, द्यानतराय कविवर 13. रत्नकरण्डक श्रावकाचार श्लोक संख्या 43 (आ. समन्तभद्र स्वामी) 14. रत्नकरण्डक श्रावकाचार श्लोक संख्या 44 (आ. समन्तभद्र स्वामी) 15. रत्नकरण्डक श्रावकाचार श्लोक संख्या 45 (आ. समन्तभद्र स्वामी) 16. रत्नकरण्डक श्रावकाचार श्लोक संख्या 46 (आ. समन्तभद्र स्वामी) 17. रत्नकरण्डक श्रावकाचार श्लोक संख्या 10 (आ. समन्तभद्र स्वामी) 18. देवशास्त्रगुरुपूजा, द्यानतराय कविवर, जयमाला पाठ । - कोहॅडॉर जिला- इलाहाबाद (उत्तरप्रदेश) *****
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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