SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 46 अनेकान्त 63/4 अक्टूबर-दिसम्बर 2010 आत्महत्या तक कर लेते हैं यह किसी से छुपा नहीं है । जैनधर्म की 'सामायिक' व्यक्ति को खुद से जुड़ने का मौका देती है खुद से खुद की मुलाकात का मौका देती है 'सामायिक'। 'सामायिक' का अभ्यास करने वाले का आत्मबल इतना मजबूत हो जाता है कि वह किसी भी परिस्थिति में अपना संतुलन नहीं खोता। इस प्रकार का आत्म विजयी व्यक्ति पूरे विश्व पर सफलता की विजय पताका फहरा सकता है। आज नयी पीढ़ी धार्मिक क्रियाओं के नाम से घबराती है। सम्प्रदायों की व्याख्याओं से उसका कोई लेना देना नहीं है। महानगरों में, विदेशों में प्रतिदिन देवदर्शन करना एक बहुत बड़ी समस्या है। आज की इस भागदौड़ वाली जिन्दगी में कोई एक स्थान पर बैठकर दो घड़ी यदि अपनी आत्मा और परमात्मा का स्मरण कर ले तो समझिए बहुत बड़ी सफलता मिल गयी है। यदि हम सामायिक के उद्देश्य, स्वरूप को सुरक्षित रखते हुए नयी सामायिक को विकसित करें तो आधुनिक युग का श्रावक धर्म से जुड़ा रहेगा, अपनी आत्मा से जुड़ा रहेगा, अपने जीवन मूल्यों को सुरक्षित रख सकेगा। तनाव और अशांति के इस माहौल में भी वह हर परिस्थिति पर विजय प्राप्त करके आत्मकल्याण का मार्ग भी प्रशस्त कर सकेगा। - असिस्टेंट प्रोफेसर, जैनदर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय) नई दिल्ली - १६ .9898034740, 9711397716 ***** email-anekant76@yahoo.co.in
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy