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________________ 6 अनेकान्त 63/4 अक्टूबर-दिसम्बर 2010 महत्त्व दिया गया है। जिससे कानून के द्वारा किये गये निर्णयों में धर्म का पूर्ण सहारा लिया गया। वर्तमान में लोगों की मान्यता केवल कानून के प्रति ही रह गई है। कानून क्या कहता है? यह लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण है परन्तु धार्मिक व्यक्ति धर्म के अनुसार अपना आचरण करता है तो वह स्वयमेव कानून का पालन करता ही है । जो व्यक्ति धर्म से अनभिज्ञ होकर धार्मिक आचरण नहीं करते, उनको कानून का पालन बलपूर्वक करवाया जाता है। धार्मिक आचरण करने वाला व्यक्ति पाप से डरता है। जिस कारण वह पाप की क्रिया नहीं करता, वह अपनी सीमा में रहता है और कानून भी पाप के नाश के लिए बनाया गया है। समाज के सभी व्यक्तियों का आचरण धर्म के अनसार हो जाएगा तो समाज स्वयमेव पाप रहित हो जाएगा तथा कानून की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। कानून का प्रयोग दुष्ट एवं दुराचारी व्यक्तियों के लिए किया जाता है और दुराचरण का नाश, समाज का उत्थान, कानून का मुख्य उद्देश्य है। वर्तमान भारतीय संविधान के निर्माण के लिए प्रारूप समिति का निर्माण किया गया। जिसमें संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद नियुक्त हुए तथा प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर नियुक्त हुए। इनके अतिरिक्त महात्मागाँधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. राधाकृष्णन, डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा आदि गणमान्य व्यक्तियों का सहयोग मिला। इनमें से लगभग सभी सदस्य सभी दर्शनों के जानने वाले सूक्ष्मवेत्ता थे। धर्म के रहस्य को समझने वालों ने सभी दर्शनों से महत्त्वपूर्ण तथ्यों को लेकर संविधान का निर्माण किया, जिनमें जैनदर्शन का अत्यधिक सहयोग रहा। जैनदर्शन के स्थूल नियमों का तथा भावनाओं का भारतीय कानून पर पूर्ण प्रभाव पड़ा। इनमें मुख्य पंचत्रत हैं, जो जैनधर्म और भारतीय कानून की मुख्य धरोहर हैं। जैनदर्शन और भारतीय कानून में आचार और विचार व्यक्तित्व के समान शक्ति वाले दो पक्ष कहे गये हैं। दोनों अन्योन्याश्रित हैं। विचारों के आधार पर ही हमारा आचरण पलता है तथा आचरण से ही विचारों में स्थिरता आती है। इन दोनों पक्षों के संतुलित विकास होने पर ही व्यक्तित्व का विशुद्ध विकास होता है। इस प्रकार के विकास को हम ज्ञान और क्रिया का विकास कह सकते हैं। जो दुःख से मुक्ति के लिए अनिवार्य है । आचार और विचार की एक दूसरे पर इसी निर्भरता को दृष्टिगत रखते हुए भारतीय तत्त्वचिंतकों ने धर्म और दर्शन का साथ-साथ प्रतिपादन किया है। उन्होंने एक ओर जहाँ तत्त्वज्ञान की प्ररूपणा कर दर्शन की स्थापना की है, वही दूसरी ओर आचार - शास्त्रों का निरूपण कर साधना का मार्ग प्रशस्त किया है। भारतीय परम्परा में आचार को धर्म तथा विचार को दर्शन कहा गया है। जैन परम्परा में आचार और विचार को समान स्थान दिया गया है। अहिंसा मूलक आचार और अनेकान्त मूलक विचार का प्रतिपादन जैन परम्परा की प्रमुख विशेषता है।
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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