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________________ 92 दंसण - णाण चारिते सुविसुद्ध खएदिजो | कसाय-माण-मालिण्णं कुदि विषय हवे जब विणव- गारवो तत्थ मिदव- धम्मो अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010 अहंकार एवं ममता मार्दव नहीं है न ही हीनता एवं न दीनता भी मार्दव है। न कर्कशता, कटुता, रूक्ष-भाव एवं अवमानता भी मार्दव है। जो दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र में विशुद्ध होता है, जो मानकषाय की मलिनता को नष्ट करता है, वही विनय है। जहाँ विनय का गौरव है, वहां मार्दवधर्म है। रहणत्तय-माहप्पं पत्तेज्ज विणयादरं । कसाय शोकसाय- डिली जत्थ होदि तत्थ विणयो । विनयादर को वही प्राप्त होता है जो रत्नत्रय के माहात्म्य को प्राप्त करता है। जहां कषाय एवं नो कषाय की निवृत्ति है वहां विनय है। मद्दव- धम्माहियारी भ्रमकार मुझ साहगो आद-गुणाणं अवलोएदि सं अणुवेदि जादि-बलतव - सुद-महादो मुत्तो । मार्दव धर्म का अधिकारी- जो जाति, बल, तप, श्रुत आदिमद से मुक्त, ममकार रहित साधक होता है वह आत्म- गुणों का अवलोकन करता है और उन्हीं की अनुप्रेक्ष्या भी करता है। सम्मक्ष- णाण चारित्र - गुणेहिं गुणी सो एव जो होदि विदु क्षि मदादो विमुक्षो। सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र गुणों से गुणी वही होता है जो मृदु हो। मद आदि से विमुक्त हो । माणो गव्व परिणामो फरुसेसु मणो माणो द्दियो परमद्दणो । माण- कषाय-कारणेण मिदुक्षा भावो जेण सो अप्प जादि अप्पकल अप्पबलं अप्पतवं अप्पणाणं अप्प-रूवं अप्पलाहं अप्प-ईसरं महाणिज्ज मण्णदे।
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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