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________________ अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010 अहंकारा भावो गित मिदुभावो मिदु-कम्मो मिदू भावो, माण- णिग्गह - घादगो । मान का/ अभिमान रोकना मार्दव है। मान, अभिमान, अहंकार, अहंभाव मानोदय आदि जो हैं, उनका निर्हरण निग्रह मार्दव है। मृदुता का भाव मार्दव है। मृदुपरिणाम, कोमलभाव, विनय संपन्नता, मदविहीनता, अहंकार का अभाव आदि मृदुभाव है। जहां मृदुकर्म, मृदुभाव, मान निग्रह या मृदुता है वहां मादंव धर्म है। जादि-कुल-बलो रूखो तव सुदेस लागो । गाव-मुक्त सामण्णो तस्स मव-धम्मओ उत्तम - णाण- महाणो - उत्तम-तव-मरण- करण-सीलो गि अप्पाणं जो हीलदि मदवरदणं हवे तस्स ॥ (कार्तिकेयानुप्रेक्षा.325) जाति, कुल, बल, रूप, तप, श्रुत ऐश्वर्य एवं लाभ मद हैं उनके प्रति गर्व से रहित श्रमण जो होता है, उसका मार्दव धर्म होता है। उत्तम ज्ञान, उत्तम तप,, उत्तम चरण, उत्तम करण, उत्तम शील आदि को जो आत्मा का आधार बनाता है, उसका मार्दव रत्न होता है। अठविध मदाभावो ति मदवो पर पदस्थाणं अहंकरेमि अहंकुणेमि तं मूल भावणं उम्मूलेदि जो तस्स मद्दव धम्मो । आठ प्रकार के मद का अभाव होना मार्दव धर्म है। पर पदार्थों का मैं करता हूँ, मैं कर सकता हूँ ऐसी मूल भावना का जो उन्मूलन करता है उसका मार्दवधर्म है। अणुवमो हि मदवो । 91 अणुवमो हिमद्दवो मदवेण माण- कसा यस्स खर्या । साहु-समागो तच्चसद्वहणं सण्णाणं चारित्र गुणाणं च विगासो ति - मार्दव धर्म अनुपम धर्म है- मार्दव से मान कषाय का क्षय होता है। इससे समागम, तत्वश्रद्धान, सद्ज्ञान और चारित्र गुणों का विकास होता है। मदवो णो अहं ममो। णो हणक्षण- दीणश्रं कक्कस कडुल- रुक्ख - भाव अवमाणक्षणं च मदवो णो । साध
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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