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________________ 86 होता है। अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010 धम्मो एगपदीवो त्ति सुद्धचेंदण भस्सरो । स पर वत्थुणो भासी अप्पा अप्यम्हि दंसगो ॥ समो त्तिधम्मो जत्थ तत्थ ण मोह रागो त्ति । - सयलदोसपरिचत्तो धम्मो संसार - भव-तरण - हेदु-तरणी ॥ धर्म एक प्रदीप है, वह शुद्ध चैतन्य रूप भास्कर है, जो स्व-पर वस्तुओं का प्रकाशक है, आत्मा का आत्मा में दृष्टि वाला है। जहाँ समत्व धर्म होता है वहाँ मोह-राग नहीं होता है। सकल दोषों से रहित धर्म संसार सारग से पार ले जाने के लिए तरणी है। वत्थु - सहाधम्मो वत्थुत्ति पदत्थं दव्वं च भासदे । जथा वत्थू होदि तथा परिणामो योग्गणाणं परिणामो ति रुब-रस-गंध-वण्णो आद सहावो णाणं आदा णाणं, णाणं आदा । समाज, परिवार एवं राष्ट्र की अपेक्षा से दया करना धर्म है। आत्म समान दृष्टि सभी जीवों के प्रति होना चाहिए। दर्शन/सम्यग्दर्शन ही प्रधानता रत्नत्रय, चारित्र, आत्म परिणाम, एवं उत्तम सुख की ओर ले जाता है वह धर्म है। सामण्णधम्मो उत्तम-खम-मद्दवज्जव सुचि सच्च-संजम-तवच्चागाकिंचण बंहचेरा धम्मो ॥७॥ उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शुचिता, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य से श्रमणधर्म है। इमे खम-मद्दवादिधम्मो जथ समणाणं संवर-रोधणत्थं सहयारी तधेव सावगाणं च । ये क्षमा, मार्दव आदि धर्म जैसे श्रमणों के संवर या कर्मों के आगमन के रोकने में सहायक होते हैं वैसे ही ये आवकों के लिए भी उपयोगी है। मिच्छत्त-परिणाम कसायादि कारणं च भूमिगाणुसारेण सावगा समणा वि संवरणं कुर्णेति । मिथ्यात्व परिणाम, कषायादि परिणामों का श्रावक और श्रमण दोनों अपनी भूमिकानुसार संवरण करते हैं। समयाणं उत्तम-खमादि-धम्मो अणताणुबंधी - पच्चक्खाण अपच्चकखाण- विविध कसाय अभावं च होहिंति । विरदावरद-गुणद्वाण बट्टी सम्मणाणी सावगाणं च अणताणुवंध-पच्चक्खाण-कसाय, खयत्थं च । मिच्छादिद्दिणो णो हुंति ते। श्रमणों के उत्तमक्षमादि धर्म अनंतानुबंधी, प्रत्याख्यान और अप्रत्याख्यान त्रिविध कषायों के अभाव को प्राप्त होंगे। ये विरताविरत गुणस्थानावर्ती सम्यग्ज्ञानी श्रावकों के लिए
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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