SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 83 अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010 अलंकृत किया गया था। अन्य अनेक ग्रंथों के भी यशस्वी टीकाकार और प्रणेता श्री शास्त्री जी हैं। ७. “जैनाचार्य विजय' चम्पू एक अज्ञात कवि के 'जैनाचार्य विजय' नामक चम्पू काव्य का भी उल्लेख मिलता है। किन्तु यह रचना अभी तक अप्रकाशित है। उपसंहार गद्य-पद्य अथवा मिश्र शैली, मानव अनुभूतियों की अभिव्यक्ति के साधन-मात्र हैं। इन सभी साधनों का उपयोग वैदिक काल से होता चला आ रहा है। युग-प्रवृत्ति के अनुसार साहित्य के अन्त:एवं बाह्म स्वरूप में परिवर्तन होता रहता है। चम्पूकाव्य भी युग विशेष की प्रवृत्तियों से अनुप्राणित होकर लिखे गये हैं। गद्य और पद्य के अत्यन्त प्रौढ तथा परिमर्जित स्वरूप ग्रहण कर लेने पर, चम्पू काव्यों की रचना आरंभ हुई। अतः इनके गद्य-पद्य में भी उसी प्रकार प्रौढ़ता का दर्शन होता है। यदि कुछ चम्पू काव्य-नलचम्पू, यशस्तिलक चम्पू जैसे काव्यों के उच्च स्तर तक नही पहुंच सके हैं तो इससे उनके निर्माताओं की असमर्थता ही सिद्ध होती है। चम्पू काव्यों की महत्वपूर्ण देन यही है कि संस्कृत साहित्य की अन्य विधाओं के ह्रासकाल में भी, वे अपना वैभव प्रदर्शित करते रहे तथा संस्कृत भाषा और साहित्य को अनेक शताब्दियों तक गतिशील बनाये रख सके। युग-भावना के अनुसार चम्पू काव्यों ने अपने वर्णन का क्षेत्र भी विस्तृत कर लिया और प्राचीन पौराणिक परंपरा से अविच्छन्न संबन्ध भी बनाये रखा। युग-प्रवृत्ति के अनुसार ही लोक मानस का अनुरंजन करते हुए उन्होंने अपना महत्व प्रतिष्ठापित किया है। अनुभूति और अभिव्यकित की न्यूनता ने ही, उनमें उस रमणीयता का समावेश किया जो सह्रदय को आनन्द से आप्लावित और चमत्कृत करने में समर्थ हुई। संदर्भ: 1. संस्कृत साहित्य का समीक्षात्क इतिहास: डॉ. कपिलदेव द्विवेदी, पृ. 601 2. काव्यादर्श, 1.31 3. जीवन्धर चम्पू, 1/9 4. यशस्तिलक चम्पू, चतुर्थ आश्वास 5. यशस्तिलक चम्पू, 7 क. 32 6. वही, 2.259 7. मार्कण्डेयपुराण 500 39, 41,57 8. कूर्म पुराण लक्सी , 37-38 9. अग्नि पुराण 10, 1011 10. वायु पुराण (पूर्वार्द्ध)/ 5.33 11. ब्रह्माण्ड पुराण (पूर्व) 2,14 12. वराह पुराण/ 74.49 13. लिंग पुराण/ 47/19-23, 57
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy