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________________ अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010 61 हजार हाथों वाले होकर दान दो।) वेदों में कहा गया है कि दान से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, दिया गया दान कभी व्यर्थ नहीं जाता है। अदानी को शोक प्राप्त होता है। जैनाचार में श्रावक के षट् आवश्यकों में दान का सर्वातिशायी महत्व है। अपने तथा दूसरों के उपकार के लिए अपनी वस्तु का देना दान है। विधि, द्रव्य, दाता तथा पात्र की विशेषता से दान में विशेषता आती है। दान के मुख्य रूप से चार प्रकार हैं- औषधज्ञान, अभय और आहार। (घ) जलगालन मनुस्मृति में 'वस्त्रपूतं जलं पिबेत् कहकर छानकर जल पीने का कथन किया गया है। लिंगपुराण में कहा गया है कि संवत्सरेण यत्पापं कुरुते मत्स्यवेधकः। एकाहेन तदाप्नोति अपूतजलसंग्रही॥९ अर्थात् मछलीमार एक वर्ष में जितना पाप करता है, उतना पाप बिना छने जल का उपयोग करने वाला एक दिन में कर लेता है। जैनाचार में अहिंसा व्रत के परिपालन एवं जीव दया की भावना से जल छानने की क्रिया को श्रावक का आवश्यक चिन्ह माना गया है। छने हुए जल की मर्यादा एक मुहूर्त, गर्म जल की मर्यादा छः घण्टा, उबले जल की मर्यादा दिन-रात तक मानी गई है। (ड.) रात्रि भोजनत्याग प्राचीन काल में वैदिक परंपरा में भी रात्रि भोजन त्याग की व्यवस्था थी- ऐसा कतिपय उल्लेखों से पता चलता है। अनेकत्र महाभारत के नाम से प्राप्त एक श्लोक में नरक के जिन चार द्वारों का कथन किया गया है, उनमें एक रात्रिभोजन भी है। यथा नरकद्वाराणि चत्वारि प्रथमं रात्रिभोजनम्। परस्त्रीगमनं चैव सन्धानानन्तकापिके। एक अन्य श्लोक में मार्कण्डेय महर्षि के अनुसार रात्रि में जल पीने को रुधिरपान के समान तथा अन्नभरण को मांसभक्षण के समान कहा गया है 'अस्तंगते दिवानाथे आपः रुधिरमुच्यते। अन्नं मांससमं प्रोक्तं मार्कण्डेयमहर्षिणा॥ जैनाचार में रात्रि भोजन का सर्वथा निषेष है। किन्तु यदि कोई गृहस्थ रात्रि भोजन को पूरी तरह त्याग करने में असमर्थ हो तो उसे पानी, दवा, दूध आदि की छूट रखकर स्थूल आहार का तो त्याग कर ही देना चाहिए।' (च) मधुत्याग मधु (शहद) यद्यपि फूलों से संचित उनका रस है किन्तु इसमें मधुमक्खियों का मृत शरीर, उनके अण्डे एवं भ्रूणों का मिश्रण पाया जाता है। मधुमक्खियों का मल-मूत्र एवं लार
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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