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अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010
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इस प्रकार सर्वार्थसिद्धि में आचार्य पूज्यपाद ने सैद्धान्तिक पक्ष को अक्षुण्ण रखते हुए षट्खण्डागम आदि ग्रंथों की तरह समग्र विषयवस्तु को निक्षेपविधि में बांधकर नयदृष्टि से विचार किया है। चूंकि वे पूर्ण विकसित दार्शनिक एवं तार्किक युग के आचार्य थे, इसलिए उन्होंने नय संबन्धी विवेचन में उस युग के दार्शनिक साहित्य के लिए आवश्यक तत्त्वों साध्य साधन, हेतु, युक्ति आदि से युक्त न्यायवाक्यों का प्रयोग कर साध्य को सिद्ध किया है, जिसका प्रबल उदाहरण सर्वार्थसिद्धि में वर्णित नय विमर्श है। संदर्भ1. प्रमाणनयैरधिगमः- तत्त्वार्थसूत्र, 1.6
26. दृष्टव्य, जैन न0कु0 स0अ0 पृ.133 2. षट्खण्डागम, सूत्र 4.1-50 (पु.9)
27. त0वा0 16 3. वही, 4,1,47,(पु.9)सूत्र4,2(पु.10)आदि
28. स्याद्वाद मं.28,310/9 4. स. सि. 1,6,15
29. वही, 27.305 आचार्य पूज्यपाद, सर्वार्थसिद्धि, भारतीय ज्ञानपीठ 30. तत्त्वार्थाधिगमभाष्य, 1,35 इन्स्टी. एरिया, लोदी रोड, नई दिल्ली, सं.15 31. आप्तपरीक्षा, 9 सन् 2009, सूत्र 1,6,15
32. तश्लोकवार्तिक 1.33 5. समन्तभद्र, आप्तमीमांसा,101
33. सिद्धिविनिश्चयटीका,2.101.102 6. प्रमाणैकदेशाश्च नया:- स.सि. 1.32
34. स०सि० 1.33 7. आचार्य विद्यानंद, तत्त्वार्थश्लोकवार्मिकम्, पृ.123 35. युक्त्यनुशासन,50 और स्वयंभूस्तोत्र 52 8. वही, पृ.118
36. समन्तभद्र,स्वयंभूस्त्रोत, 61,62 9. मल्लिषेण, स्याद्वादमंजरी, 28.390.9
37. स०सि० 1.6 10. नयचक्र/श्रुत/32,उद्धृत, क्षु.जिनवर्णी जैनेन्द्र 38. अकलंक, लघीयस्त्रवृत्ति, 30 सिद्धासन्त कोष, भाग 2 पृ. 516
39. द्रष्टव्य, न्यायवि0 114, त0वा01.5.8, 11. स.सि. 1.6
5.2426 12. द्रष्टव्य, कोठिया, द.लाल, अ. ग्रंथ 516
40. स00 1.6 13. त.श्लोवार्तिक, पृ. 142
41. जैन, न0कु0 जैनदर्शन, पृ0339 14. वही, 1.6 पृष्ठ 124
42. लघीयस्त्रय, 72, त०श्लोकवा0 1.33 15. आप्तमीमांसा 101,105, सिद्धसेन, न्यायावतार,30 43. जैन, म0कु0 जैनदर्शन, पृ. 339 अकलंक, लघीयस्त्रय, 62
44. लघीयस्त्रय,72, त०श्लोकवा0 1.33 16. आप्तमीमांसा 105
45. स०सि० विशेषार्थ, 1.33 17. प्रमाणसंग्रह, 1
46. स्या0मं0 28.310.319 18. जैन, म0कु0 जैनदर्शन, पृ.266 गणेशप्रसाद वर्णी 47. त०श्लोकवा0 1.7.28
जैन ग्रंथमाला, वाराणसी तृ.सं. 1974, पृष्ठ 266 48. कुन्दकुन्द, समयसार, 13 19. अकलंक, लघीयस्त्रय, 52,55,62 एवं वृ.30 49. पुरुषार्थसिद्ध्ययुपाय, 13 20, जैन, एन.के, समन्तभद्र अवदान, स्याद्वाद प्रसारिणी 50. समन्तभद्र अवदान, पृष्ठ 136
सभा, चैतन्य निलय, 3/359, न्यु विद्याधर नगर 51. स०सि0 33 जयपुर, पृष्ठ 133
52. वही, 33 21. स०सि० 1,6
53. शास्त्री, फूलचन्द, स०सि० विशे पृ0105 22. वही, 1,33
54. ससि0 1.33 23. अकलंक, तत्त्वार्थवार्तिक, 1,6
55. स्या0 मं0 28.311 24. सधर्मेणैव साध्यस्य साधादविरोधतः।
56.त0वा0 133, श्लोकवा0 11.133 स्याद्वादप्रविभक्तार्थविशेषव्यंजको नयः।आ0मी010557. त0वा0 1.33