SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010 71 हैं। या वस्तु एक अंशग्राही को ज्ञानियों ने नय कहा है इसलिए नय न पूर्ण ज्ञान है न अज्ञान है परन्तु ज्ञानांश है। नय में द्रव्य का पूर्ण ज्ञान नहीं होता अपितु केवल वस्तु अंशग्राही होता है। नय के बिना स्याद्वाद की सिद्धि नहीं होती है। इसलिए स्याद्वाद सिद्धि एवं एकान्त खंडन के लिये नय की अपेक्षा आवश्यक है, क्योंकि "णयमूलो अणेयंतो" अनेकांत का मूल नय है। वस्तु अनंकांत स्वरूप है। अनेकांत को जानने पर ही वस्तु के स्वरूप को जान सकते हैं। जब वस्तु के स्वरूप को जानेंगे तभी सम्यक्दृष्टि हो सकते हैं। जे णयदिटिठविहीणां तेसिंण हु वत्थुरूवउवलद्धि। वत्थुसहावविहूणा सम्माइट्ठी कहं हुंति। नय दृष्टि से रहित व्यक्ति वस्तु स्वरूप को प्राप्त नहीं कर सकता है। वस्तु स्वभाव रहित जीव सम्यक् दृष्टि नहीं हो सकता। नयनिरूपण: मूल नय द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक प्रत्येक वस्तु द्रव्य एवं पर्यायात्मक है। द्रव्य को विषय करने वाला द्रव्यार्थिक नय है। इन्ही दोनो मूल नयों में शेष नयों का अन्तर्भाव हो जाता है। वैसे जितने भी वचन भाग है, उतने ही नय है अत: नयों की संख्या असंख्यात है वे असंख्यात नय द्रव्यार्थिक नयों के ही भेद है क्योंकि उन सबका विषय या तो द्रव्य होता है या पर्याय। दो चेव मूलिमणया भणिया दव्वत्थपज्यत्थगया। अण्णं असंखसंखा ते तब्भेया मुणेयव्वा। नय श्रुत ज्ञान के भेद है और वे नैगम आदि के भेद से सात प्रकार के हैं वे नय द्रव्य और पर्याय मूलक है अर्थात् इन नयों का मूल द्रव्य और पर्याय है। द्रव्य वह पर्याय है जिसमें एकत्व और अन्वय का अनुगमन पाया जाता है। द्रव्य एकत्व के द्वारा स्व पर्यायों का तथा अन्वय के द्वारा द्रव्यांतरों का अनुगमन करता है। यहाँ एकत्वानुगम के द्वारा भेदकान्त का निषेध किया है और अन्वयानुगम शब्द के द्वारा सब द्रव्यों में एकत्व का निरास किया गया है वह द्रव्य निश्चयात्मक होता है। संशयादि का व्यवछेद करके ग्रहण करने का नाम निश्चय है और इस प्रकार का जिसका स्वभाव है उसे निश्चयात्मक कहते हैं। केवल द्रव्य ही निश्चयात्मक नही है; किन्तु पर्याय भी निश्चयात्मक होती है। इसके अतिरिक्त पर्याय व्यतिरेक और पृथक्त्व का अनुगमन करती है। परस्पर व्यावृत्ति को व्यतिरेक कहते हैं। स्वद्रव्य की पर्यायांतरों की अपेक्षा से पर्यायों में व्यतिरेक पाया जाता है तथा द्रव्यांतरों की अपेक्षा से पृथक्त्व पाया जाता है। इस प्रकार पर्यायों में व्यतिरेक और पृथक्त्व दोनों बातें पायी जाती है। द्रव्यार्थिक नय का मूल निश्चय है और पर्यायार्थिक नय का मूल व्यवहार है। जीव-अजीव द्रव्य का जो सत् स्वभाव है जो कभी नष्ट नहीं होता। उसको अवलम्बन करने
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy