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________________ अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010 13 विंध्य क्षेत्र का नामकरण श्रुत विंध्य पर्वत के नाम पर हुआ। इस पर्वत की श्रेणियाँ पूरे क्षेत्र में फैली हुई हैं। स्वतंत्रता के पूर्व इस क्षेत्र का प्रचलित नाम बुंदेलखण्ड और बघेलखंड था। बुदेलखंड में छोटी-छोटी 34 रियासतें थीं। बघेलखंड में इसी नाम की केवल एक रियासत थी, जिस पर बघेलवंशीय शासकों का शासन था। 4 अप्रैल 1948 ईस्वी को बुंदेलखंड और बघेलखंड के भू-भाग को संघ में विलीन कर दिया गया। इस नए प्रदेश का नाम विंध्यप्रदेश हुआ। इस प्रदेश में दतिया, टीकमगढ़, छत्तरपुर, पन्ना, सतना, रीवा, सीधी और शहडोल जिले सम्मिलित थे। एक अप्रैल सन् 1957 को वृहत मध्यप्रदेश का निर्माण हुआ और विंध्यप्रदेश उसमें समाहित कर दिया गया। इसमें सागर, टीकमगढ़, दमोह, छतरपुर, पन्ना, सतना, रीवा, शहडोल एवं सीधी लिये गये एवं इन नौ जिलों को विंध्यक्षेत्र की संज्ञा दी गई। इस क्षेत्र में पपौरा, अहार, बंधा, खजुराहो, द्रोणगिरि, रेशन्दीगिरि, नैनागिरि, पजनारी, बीना-बारहा, पटनागंज एवं कुण्डलपुर, खजुराहों, मऊ-सहानिया, आदि अनेक तीर्थ हैं। विंध्य क्षेत्र के जैन ग्रंथ भण्डारों में संग्रहीत विशिष्ट पाण्डुलिपियाँ इस वर्ग में हम सर्वप्रथम क्रमांक, ग्रंथ का नाम, लेखक/ टीकाकार, पत्र संख्या, प्राप्ति स्थल एवं पाण्डुलिपि क्रमांक दे रहे हैं। सागर जिले के ग्रंथ भण्डारों में संग्रहीत विशिष्ट पाण्डुलिपियाँ1. सारंग वैदिक संहिता (संस्कृत/आयुर्वेद) सारंगधर वैद्य, 40, श्री दिग. जैन मंदिर, अतिशयक्षेत्र, पिडरुआ, 25 2. समाधि तंत्र भाषा वचनिका, पर्वत धर्मार्थी 109, श्री दि. जैन मंदिर, पिडरुआ,75 3. धर्मसार भाषा मूल सकलकीर्ति भट्टारक, पं. शिरोमणिदास, 56, श्री दि. जैन मंदिर, बांदरी, 11 4. धर्मामृतसार (हिन्दी), आ. गुणकीर्ति, 115, श्री दि. जैन मंदिर, बांदरी, सागर, 40 5. हरिवंश पुराण (हिन्दी), ब्रह्म जिनदास/पं. खुशालचंद, 538, श्री अभिनंदननाथ दि. जैन मंदिर, इटावा बीना, 69 6. हरिवंश पुराणा (हिंदी), ब्रह्म जिनदास/पं. खुशालचंद, 538, श्री अभिनंदननाथ दि. जैन मंदिर, इटावा बीना, 73 7. अक्कलसार (हिन्दी), पं. खूबचंद, 129, श्री अभिनंदननाथ दि. जैन मंदिर, इटावा बीना, 109 8. समाधितंत्र भाषा, पर्वत धर्मार्थी, 138, श्री अभिनंदननाथ दि. जैन मंदिर, इटावा बीना, 117 9. सार समुच्चय, कुलभद्र, 15, श्री अभिनंदननाथ दि. जैन मदिर, इटावा बीना, 162 10. हरिवंशपुराण भाषा वचनिका, ब्रह्म जिनदास/पं. खुशालचंद, 189, श्री अनेकांत
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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