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________________ 16 अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010 कटुक, आम्ल, मधुर और कसैला। दो गंध हैं- सुगन्ध तथा दुर्गन्ध और 8 स्पर्श हैं- कोमल, कठोर, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध तथा रूक्ष। इनमें से प्रत्येक के संख्यात, असंख्यात और अनन्त भेद कहे गए हैं। पुद्गल के विशेष धर्म या गुण चार हैं- स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण। शब्द भी पौद्गलिक होता है। स्पर्शादि चार गुणों तथा शब्दों को इन्द्रियों से ग्रहण किया जाता है। स्पर्श का स्पर्शेन्द्रिय, वर्ण का चक्षुरिन्द्रिय तथा शब्द का श्रोत्रेन्द्रिय से ग्रहण होता है। इस प्रकार पुद्गल विविध इन्द्रियों का विषय बनता है। वर्ण अर्थात् रूप की प्रधानता के कारण पुद्गल को रूपी (मूर्त) कहा जाता है। हमारी इन्द्रियाँ रूपी पदार्थों अर्थात् पौद्गलिक वस्तुओं का ज्ञान करने में ही समर्थ हैं। अरूपी अर्थात् अपौद्गलिक पदार्थ इन्द्रियज्ञान के विषय नहीं बनते। जीव (आत्मा) धर्म, अधर्म, आकाश और काल अरूपी हैं। इनका ज्ञान इन्द्रियों द्वारा नहीं हो सकता। ये या तो मन की चिन्तनशक्ति (अन्तर्निरीक्षण, अनुमान, आगम आदि) द्वारा माने जाते हैं या इनका आत्मा द्वारा साक्षात्कार होता है।' जैन शास्त्रों के अनुसार पुद्गल द्रव्य में निम्नलिखित विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं(१) पुद्गल अस्तिकाय है : प्रत्येक पौद्गलिक पदार्थ अनेक अवयवों का समूह है, तथा आकाश प्रदेशों में फैलता है (अवगाहन करता है) इसलिए वह अस्तिकाय है। (२) पुद्गल सत् और द्रव्य है: वह सत् है इसलिए वह परिवर्तनशील भी है और नित्य भी है। (३) पुद्गल नित्य, अविनाशी है: तत्त्वान्तरणीय नहीं है- नित्यत्व एवं अतत्त्वान्तरणीयता द्रव्यों में होते हैं। इसलिए पुद्गल के लिए निम्नलिखित विशेषण प्रयुक्त हुए हैं- काल की अपेक्षा से पुद्गल अतीत में था, वर्तमान में हैं और भविष्य में होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो अनादि अतीत काल में जितने पुद्गल-परमाणु थे, वर्तमान में उतने ही हैं और भविष्य में भी उतने ही रहेंगे। पुद्गल-द्रव्य की अपनी मौलिकता यथावत् बनी रहती है। पुद्गल नियत, शाश्वत, ध्रुव, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। (४) पुद्गल अचेतन सत्ता है, चेतन नहीं - पुद्गल चैतन्य-रहित अजीव पदार्थ है। वह सदा अजीव रहता है, वह न जानता है, न अनुभव करता है, न चिंतन-मनन करता है। किसी भी पौद्गलिक उपकरण द्वारा यह कार्य संभव नहीं है। (५) पुद्गल परिणामी है अर्थात् परिवर्तनशील है पुद्गल क्रियावान है अर्थात् सतत सक्रिय है: पुद्गल जड़ पदार्थ या अचेतन होते हुए भी सतत सक्रिय बना रहता है। पुद्गल चाहे परमाणु के रूप में हो या स्कंध-रूप में हो, सतत् परिवर्तनशील रहता है, उसमें कुछ न कुछ घटित होता रहता है। (६) पुद्गल गलन-मिलन-धर्मा है:
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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