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________________ अनेकान्त 62/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2009 51 समाज को सभ्यता का पहला पाठ पढ़ाया। ये आदि तीर्थङ्कर ही थे जिन्होंने लिपिकला, शिल्पकला आदि विविध कलाओं की शिक्षा देकर समाज को सांस्कृतिक मूल्यों के द्वारा संस्कारवान बनाया। धीरे धीरे सभ्य समाज में भी एक दूसरे का धन हड़पने तथा सामाजिक शोषण और उत्पीडन की गतिविधियां बढ़ीं तो जैन धर्म के 23वें तीर्थकर भगवान् पार्श्वनाथ का नया समाजदर्शन सामने आया जिन्होंने सत्य, अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रह नामक चातुर्याम धर्म की स्थापना करके समाज में बढ़ती हिंसा, छल-कपट, धनलोलुपता और आर्थिक अपराधों को नियन्त्रण में लाने के लिए धार्मिक उपाय किए। जैन धर्म के 24वें तीर्थकर भगवान् महावीर ने पूर्वोक्त चार महाव्रतों में ब्रह्मचर्य' महाव्रत को सम्मिलित करके जो नया समाजदर्शन आविष्कृत किया जैन धर्म के इतिहास में उसे एक क्रांतिकारी और सर्वोदयी समाज व्यवस्था के नाम से जाना जाता है। धीरे धीरे यह सर्वोदयी समाज चिन्तन जन-जन में इतना लोकप्रिय हुआ कि भगवान् महावीर एक धर्म विशेष के तीर्थङ्कर न रहकर भारतीय समाज के एक क्रांतिकारी समाज सुधारक कहलाए जाने लगे। प्रसिद्ध इतिहासकार एच०जी० वेल्स के मतानुसार ईस्वी पूर्व की जिस छठी शताब्दी में वर्धमान महावीर का जन्म हुआ वह धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों को प्रेरित करने वाली महत्त्वपूर्ण शताब्दी थी। इसी समय जहां एक ओर चीन में लाओत्से और कंफ़्यूशियस तथा यूनान में सुकरात और प्लेटो ने अपने देश की रूढ़िवादी परम्पराओं के विरुद्ध वैचारिक आन्दोलनों का सूत्रपात किया, वहीं भारत में भगवान् महावीर और गौतम बुद्ध ने क्रमशः जैन तथा बौद्ध धर्म को जन-आन्दोलन का रूप देकर धार्मिक संस्था के इतिहास में अभूतपूर्व क्रान्ति का मार्ग प्रशस्त किया। भारत में किसी भी सामाजिक क्रान्ति की शुरुआत धार्मिक आन्दोलनों से हुई है। छठी शताब्दी ई०पूर्व में भी वैदिक धर्म की अन्धरूढ़ियों के विरुद्ध आवाज उठाने वाले दो क्षत्रिय राजकुमार थे। इनमें से एक शाक्यवंशीय राजकुमार गौतम बुद्ध थे जिन्होंने अनात्मवाद का प्रचार कर अष्टांग मार्ग का उपदेश दिया तो दूसरे वैशाली के राजकुमार वर्धमान महावीर थे, जिन्होंने पंच महाव्रतों के उपदेश से मनुष्य मात्र को आत्मकल्याण का मार्ग बताया। जैन धर्म के सन्दर्भ में व्यक्ति स्वातन्त्र्य की अवधारणा को समझने से पहले यह जान लेना भी बहुत जरूरी है कि आधुनिक व्यक्ति स्वातन्त्र्य का विचार विशुद्ध रूप से एक पश्चिमी विचार है। अस्तित्ववाद तथा साम्यवाद के पश्चिमी विचारकों की यह देन है जिसकी पृष्ठभूमि में उपभोक्तावादी तथा भौतिकवादी चमक दमक के कारण आज अध्यात्मवाद से अघाए भारतवासियों को बहुत तेजी से व्यक्ति-स्वातन्त्र्य का विचार संमोहित कर रहा है। किन्तु वास्तविकता यह है कि यह विचार धर्म तथा आध्यात्मिक हस्तक्षेप का घोर विरोधी है। आधुनिक व्यक्ति स्वातन्त्र्य के विचार का इतिहास मध्ययुगीन युरोप की धर्मचेतना की प्रतिक्रिया का परिणाम है जो धर्म और ईश्वर के नाम पर तरह-तरह के अन्धविश्वास और दुराचार फैलाती आई है। ईश्वर और मनुष्य के मध्य धर्म संस्थाओं से जुड़े बिचौलिए भोली भाली जनता को स्वर्ग या नरक का लालच या भय दिखाकर धर्म संस्था की छवि बिगाड़ते आए हैं। यही कारण है कि साम्यवादी विचारक कार्ल मार्क्स ने मध्ययुगीन धार्मिक आडम्बरों
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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