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अनेकान्त 62/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2009
जैनधर्म और राजनीति
- डॉ. रमेशचन्द्र जैन जैन राजनीति की यह विशेषता है कि वह धर्म से अनुप्राणित है। धर्म की परिभाषा देते हुए आचार्य समन्तभद्र ने कहा है कि
देशयामि समीचीनं धर्म कर्मनिवर्हणम्।
संसारदुःखतः सत्वान् यो धरत्युत्तमे सुखे॥ रत्नकरण्डश्रावकाचार-2 अर्थात् मैं समीचीन धर्म का उपदेश करूँगा। यह कर्मों का निर्मूलन करने वाला है और प्राणियों को संसार के दुःखों से छुड़ाकर उत्तम सुख में रख देता है। आचार्य श्री ने जैनान् नहीं कहा 'सत्त्वान्' कहा। अतः सिद्ध है कि धर्म किसी संप्रदाय विशेष से संबन्धित नहीं है। धर्म निर्बन्ध है, निस्सीम है, सूर्य के प्रकाश की तरह। सूर्य के प्रकाश को हम बन्धनयुक्त कर लेते हैं, दीवारें खींचकर, दरवाजे बनाकर, खिड़कियाँ लगाकर। आज की राजनीति में भी दीवारें, दरवाजे, ओर खिड़कियाँ लग गई हैं, जिसके कारण जातिवाद, संप्रदायवाद, पूँजीवाद, समाजवाद, प्रांतवाद, क्षेत्रीयवाद आदि विभिन्न वाद उभर कर संकीर्ण स्वार्थों की पूर्ति में अपने को लीन कर रहे हैं। ___गंगानदी हिमालय से प्रारंभ होकर निर्बाध गति से समुद्र की ओर प्रवाहित होती है। उसके जल में अगणित प्राणी किलोंले करते हैं, उसके जल से आचमन करते हैं, उसमें स्नान करते हैं, उसका जल पीकर जीवन रक्षा करते हैं, अपने पेड़-पौधे को पानी देते हैं, खेतों को हरियाली से सजा लेते हैं। इस प्रकार गंगानदी किसी एक प्राणी, जाति अथवा संपद्राय की नहीं है, वह सभी की है। किन्तु उसको यदि कोई अपना बताये तो गंगा का क्या दोष है ? इसी प्रकार भगवान वृषभनाथ व भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित धर्म पर किसी जाति विशेष का आधिपत्य संभव नहीं है। धर्म और धर्म को प्रतिपादित करने वाले महापुरुष संपूर्ण लोक की अक्षय निधि हैं। महावीर की सभा में क्या केवल जैन ही बैठते थे ? नहीं। उस सभा में देव, देवी, मनुष्य, स्त्रियाँ, पशु-पक्षी सभी को स्थान मिला हुआ था। अतः धर्म किसी परिधि में बँधा नहीं है, उसका क्षेत्र प्राणिमात्र तक विस्तृत है।'
प्राचीन राजाओं की राजनीति सभी के योग और क्षेम तक विस्तृत थी। आचार्य वादीभसिंह ने राज्य को योग और क्षेम की अपेक्षा विस्तार से तप के समान कहा है; क्योंकि तप तथा राज्य से संबन्ध रखने वाले योग और क्षेम के विषय में प्रमाद होने पर अध:पतन होता है और प्रमाद न होने पर भारी उत्कर्ष होता है। आचार्य गुणभद्र के अनुसार राज्य में राज्य वही है, जो प्रजा को सुख देने वाला हो। चन्दप्रभचरित के अनुसार उत्तम देशों के जो लक्षण प्राप्त होते हैं उनमें उपजाऊ और रमणीय भूमि, स्वच्छ सरोवर, दीर्घिकायें, नदियाँ,