________________
196
अनेकान्त 61/1-2-3-4
ग्रंथ में होना ही इसका वैशिष्ट्य है। उपसंहार में लेखक ने उन विपयों को भी ले लिया है जिनकी चर्चा अनेकान्त को लेकर प्रकारान्तर से होती रहती है। उन विपयों में महत्त्वपूर्ण है विभिन्न दर्शनों में अनेकान्तवाद की खोज। इसी के साथ आधुनिक विज्ञान, भौतिकवाद-अध्यात्मवाद का समन्वय आदि महत्त्वपूर्ण विमर्श भी इस कृति में किये गये हैं। अनेकान्त विपयक अब तक उपलब्ध सामग्री का किसी न किसी तरह समावेश इस ग्रन्थ में मिल जाता है। लगभग साढ़े पांच सौ पृष्ठों वाले ग्रन्थ का गरिमापूर्ण प्रकाशन सन् 2005 में भगवान ऋपभदेव ग्रन्थमाला, सांगानेर, जयपुर ने किया है तथा मूल्य भी मात्र सौ रुपये रखा है। जैनदर्शन पर शोध कार्य करने वाले विद्वानों तथा शोधार्थियों के लिए यह ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है। एक ही स्थान पर इतना समग्र विवेचन अन्यत्र दुर्लभ है। ग्रंथ के शुभाशंसनम् में प्रो. विश्वनाथ मिश्र जी की यह पंक्ति में मन की भावना को भी व्यक्त कर रही है -
'निर्विवादमिदं यत् अनेकान्तवादमवगन्तुं व्याख्यातुं च इदमेकमेव पुस्तकं पर्याप्तमस्ति।
- डॉ० अनेकान्त जैन
पुस्तक का नाम
-
लेखक
जैनदर्शन में अनेकान्तवाद : एक अनुशीलन डॉ० अशोक जेन भ० ऋषभदेव ग्रन्थमाला, सांगानेर, जयपुर 2005 ई०
प्रकाशक
प्रकाशन वर्प
मूल्य
100 रु०