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अनेकान्त 61/1-2-3-4
183. 'इक्ष्वाकुः प्रथमस्तेषामुन्नतो लोकभूषणः।' - पद्मपुराण, 5.2 184. पद्मपुराण, 5.1-3 185. पउमचरिय, 5.3-9 186. पद्मपुराण, 5.4-9 187. हरिवंशपुराण, 13.7-11
188. पउमचरिय, 5.4 189. पउमचरिय, 5.3; पद्मपुराण, 5.4; हरिवंशपुराण, 13.7 190. पउमचरिय, 5.4; पद्मपुराण, 5.5%; हरिवंशपुराण, 13.8 191. पउमचरिय, 5.5%; पद्मपुराण, 5.6; हरिवंशपुराण, 13.9 192. 'तपनोऽन्यः प्रतापवान्' - हरिवंशपुराण, 13.9%; 'तेयस्सी तावणो पयावी य' -
पउमरिय, 5.5; 'तेजस्वी तपनोऽथ प्रतापवान्' - पद्मपुराण, 5.6 193. हरिवंशपुराण, 13.13-14 194. अस्य नाभेर्याचह्नस्य युगस्य विनिवर्तने।
हीना: पुरातना भावाः प्रशस्ता अत्र भृतले।। थिलायितुमारब्धा परलोकक्रियातिः।
कामार्थयोः समुत्पन्ना जनस्य परमा मतिः। - पद्मपुराण, 5.57-58 195. वही, 5.59 196. वही, 5.60-61 197. वही, 5.63 198. कनीयान जितशत्रोस्तु ख्याती विजयमागरः।
पत्नी सुमङ्गला तस्य तत्सुतः सगरोऽभवत्।। वही, 5.74 199. वही, 5.75
200. वही. 5.248 201. 'तनयः मागरै होः कुर्वन् कुर्वन राज्यं भगीरथः।' . वही, 5.284 202. जाते विंशतिसंख्याने वर्तमानजिनान्तरे।
देवागमनसंयुक्त विनितायामुरौ पुरि।। विजयो नाम राजेन्द्रो विजिताखिलशात्रवः।
सौर्यप्रतापसंयुक्तः प्रजापालनपण्डितः।। - वही, 21.73-74 203. संभूतो हेमचूलिन्यां महादेव्यां सुतेजसि।
सुरेन्द्रमन्युनामाभूत्सूनुस्तस्य महागुणः।। - वही, 21.75 204. तस्य कीर्तिसमाख्यायां जायायां तनयद्वयम्।
चन्द्रसूर्यसमच्छायं तातं गुणसमर्चितम्।। वज्रबाहुस्तयोराद्यो द्वितीयश्च पुरन्दरः।
अन्वर्थनामयुक्तौ तौ रेमाते भुवने सुखम्।। - वही, 21.76-77 205. वही, 21.140 206. वही, 21.159,164 207. वही, 22.101-2 208. इति संचिन्त्य विन्यस्य राज्येऽमृतवतीसुतम्।
नघुषाख्यं प्रवव्राज पार्श्वे विमलयोगिनः।। - वही. 22.112 209. नघुषस्य सुतो यस्मात् सुदासीकृतविद्विषः।
सौदास इति तेनासौ भुवने परिकीर्तितः।। - वही, 22.131 210. वही, 22.132-146 211. सिंहस्येव यतो मांसमाहारोऽस्याभवत्ततः।
सिंहसौदासशब्देन भुवने ख्यातिमागतः।। -वही, 22.147 212. 'कनकाभासमुत्पन्नस्तस्य सिंहरथः सुतः।' - वही, 22.145 213. 'स जित्वा तनयं युद्ध राज्ये न्यस्य पुनः कृती।' - वही, 122.152