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अनेकान्त 61-1-2-3-4
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तीर्थकल्प' में भगवान् आदिनाथ के उल्लेख नहीं होने का यही कारण हैन्स बेकर ने भी स्वीकार किया है। ___ कार्नेगी द्वारा बारहवीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा शाहजूरान टीले में स्थित आदिनाथ के मन्दिर को ध्वस्त करने की जो सूचना दी गई है उसी सन्दर्भ में जिनप्रभसूरि द्वारा 'विविधतीर्थकल्प' में वर्णित 'देवेन्द्रसूरि कथानक' पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
आचार्य जिनप्रभ के अनुसार देवेन्द्रसूरि नामक किसी मुनि ने अपनी मन्त्रविद्या के दिव्य प्रभाव से अयोध्या की चार जैन मूर्तियों को आकाशमार्ग द्वारा 'सेरीसयपुर' में पहुंचा दिया था। उल्लेखनीय है कि इन देवेन्द्रसूरि की पहचान नागेन्द्रगच्छीय जैनाचार्य के रूप में की गई है-67 तथा बारहवीं शती का अन्त और तेरहवीं शती का प्रारम्भ इनका स्थिति काल स्वीकार किया जाता है।26 'सेरिसयपुर' गुजरात प्रान्त में गान्धीनगर स्थित वर्तमान 'सेरिसपुर' नामक एक जैन तीर्थ है।.०० स्पष्ट है 'विविधतीर्थकल्प' के इस देवेन्द्रसूरि प्रसंग द्वारा अयोध्या के जैन मन्दिरों में जिनमूर्तियों के स्थानान्तरण की घटनाएं संकेतित हैं। हैन्स बेकर के मतानुसार अयोध्या से जैन मूर्तियों के स्थानान्तरण का उल्लेख इस ओर इङ्गित करता है कि उस समय मुस्लिम मूर्ति-भञ्जकों के भय से जैन मूर्तियों को अन्यत्र सुरक्षित स्थानों की ओर ले जाया जा रहा था। हैन्स बेकर ने गोमती नदी के तट से पाई जाने वाली आदिनाथ की दो मूर्तियों का सम्बन्ध भी इसी स्थानान्तरण के धरातल पर देखने का प्रयास किया है। 3.3 जैन साहित्य में अयोध्यातीर्थ की महिमा वस्तुतः जैन साहित्यकार विभिन्न युगों में एक पावन तीर्थस्थली के रूप में अयोध्या के महत्त्व को रेखाङ्कित करते आए हैं। जैन आगम ग्रन्थों में अयोध्या का साएय, सागेय (साकेत), अउज्झा (अयोध्या), कोसल, विणीया (विनीता), इक्खागुभृमि (इक्ष्वाकुभूमि) के रूप में उल्लेख मिलता है। हैन्स बेकर ने इस सन्दर्भ में अयोध्या के प्राकृत पर्यायवाची पाठों की एक तुलनात्मक सारिणी भी प्रस्तुत की है। तृतीय चतुर्थ शताब्दी ई० के लेखक संघदास गणि वाचक की रचना 'वसुदेवहिण्डी' में श्रावस्ती जनपद के उत्तर की ओर कोसल जनपद की भौगोलिक स्थिति का वर्णन करते हुए उसमें श्रेष्ठतम नगर के रूप में 'साकेत' नगरी का उल्लेख मिलता है।22
यतिवृषभ (पांचवीं सदी) ने साकंत अथवा अयोध्या को पांच तीर्थङ्करों की जन्मभूमि के रूप में महामण्डित किया है। रविषेणाचार्य (677 ई०) के