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________________ अनेकान्त 61 1-2-3-4 177 सन् 1975-76 में प्रो० बी० बी० लाल को अयोध्या स्थित रामकोट का उत्खनन करते हुए एक जैन मूर्ति भी उपलब्ध हुई। कायोत्सर्ग मुद्रा में रचित इस जैन केवली की मूर्ति का समय चतुर्थ शताब्दी ई० पूर्व निर्धारित किया गया है और अब तक प्राप्त जेन मूर्तियों में सर्वाधिक प्राचीन मूर्ति मानी जाती है। जैन ग्रन्थ 'बृहत्कल्पभाष्य' से भी यह ज्ञात होता है कि यहां जीवन्त स्वामी की प्रतिमा विद्यमान थी। सन् 1870 में रायबरेली, अवध के कमिश्नर पैट्रिक कार्नेगी ने अपनी रिपोर्ट में दो जैन मूर्तियों के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचना दी है। नग्न एवं चक्र चिह्न से अंकित होने के कारण इन मूर्तियों की पहचान आदिनाथ तीर्थङ्कर की मूर्तियों के रूप में की गई है। कार्नेगी के अनुसार सन् 1850 ई० में किसी बैरागी को गोमती नदी के किनारे से ये मूर्तियां मिलीं थीं। पुरातत्त्ववेत्ता जनरल कनिंघम को भी इन मूर्तियों के चित्र भेजे गए थे। बाद में इन्हें फैजाबाद के स्थानीय संग्रहालय में सुरक्षित रख दिया गया था।" पुरातत्त्ववेत्ता फुहरर ने 1891 में प्रकाशित अयोध्या सम्बन्धी रिपोर्ट में इन मूर्तियों का उल्लेख किया है। इनके अतिरिक्त फैजाबाद संग्रहालय में तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की भी दो मूर्तियां विद्यमान थीं जिनका समय 7वीं ४तीं शताब्दी ई. के लगभग माना जाता है।'' 3.1 स्वर्गघाट का आदिनाथ मन्दिर कार्नेगी ने अपनी रिपोर्ट में अयोध्या के उत्तर तथा स्वर्गघाट के दक्षिण की ओर स्थित भगवान आदिनाथ के एक प्राचीन मन्दिर का भी उल्लेख किया है। जिसे 12वीं शताब्दी ई० में हुए मौहम्मद गौरी के आक्रमण के समय एक मुस्लिम धर्मान्ध अधिकारी ने ध्वस्त कर दिया था। ऐसा माना जाता है कि मकदूम शाह जुरान गौरी नामक इस अधिकारी ने जैन मन्दिर को तोड़ा और उसके बाद वहां अपना मकबरा बनवा दिया। तभी से यह आदिनाथ मन्दिर का टीला 'शाहजूरान टीले' के नाम से जाना जाता है। यहां स्थित जैन मन्दिर का निर्माण 5वीं से 12वीं शताब्दी ई. के मध्य हुआ था। सन् 1891 में प्रकाशित ए० फुहरर की अयोध्या सम्बन्धी पुरातात्त्विक रिपोर्ट भी इस तथ्य की पुष्टि करती है कि शहाबुद्दीन गौरी के साथ आए मुस्लिम आक्रान्ता मकदूम शाह ज़रान गौरी ने आदिनाथ के जैन मन्दिर को ध्वस्त किया और उन अवशेषों पर मुस्लिम कब्रों और मस्जिद आदि का निर्माण करवाया। स्थानीय मुस्लिम परम्परा के अनुसार उसी शाह ज़ुरान गौरी के नाम से इस टीले का नाम 'शाहजूरान टीला' प्रसिद्ध हुआ।"
SR No.538061
Book TitleAnekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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