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अनेकान्त 61 1-2-3-4
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2.6 तीर्थक्कर मुनिसुव्रतनाथ के बाद इक्ष्वाकु वंशावली 'पद्मपुराण' में बीसवें तीर्थङ्कर मुनिसुव्रतनाथ का अन्तराल प्रारम्भ होने पर विजय नामक राजा से अयोध्या के इक्ष्वाकु राजाओं का वंशानुक्रम पुनः प्रारम्भ होता है। राजा विजय की रानी का नाम हेमचूला था। उससे सुरेन्द्रमन्यु नामक पुत्र हुआ। तदनन्तर सुरेन्द्रमन्यु की कीर्तिसमा स्त्री से वज्रबाहु और पुरन्दर नामक दो पुत्र हुए। इससे आगे छोटे पुत्र पुरन्दर से इक्ष्वाकुवंश की परम्परा चलती है। पुरन्दर की भार्या पृथिवीमती से कीर्तिधर हुआ। कीर्तिधर की रानी सहदेवी से सुकोशल हुआ।"५. सुकोशल की स्त्री विचित्रमाला से हिरण्यगर्भ हुआ। हिरण्यगर्भ का विवाह गजा हरि की अमृतवती नामक कन्या से हुआ। हिरण्यगर्भ ने अमृतवती में उत्पन्न पुत्र नघुष को राज्य सौंपकर स्वयं दीक्षा धारण कर ली।
राजा नघुष समस्त शत्रुओं को वश में कर लेने के कारण 'सुदास' कहलाया और उसका पुत्र 'सौदास' नाम से प्रसिद्ध हुआ।'' 'पद्मपुराण' के अनुसार सौदास आचारभ्रष्ट होकर नरमांसभक्षी हो गया था। इसलिए वह 'सिंहसौदास' के रूप में भी विख्यात हुआ। सौदास का कनकाभा नामक स्त्री से सिंहरथ नामक पुत्र हुआ था। सौदास ने अपने पुत्र सिंहरथ को युद्ध में जीतकर पुनः उसे ही अयोध्या के गज्य का उत्तराधिकारी बना दिया था।'' 'पद्मपुराण' के अनुसार मौदाम के बाद इक्ष्वाकुवंशी गजाओं की वंशावली का क्रम इस प्रकार चलता है
मौदाम, सिंहग्थ, ब्रह्मग्थ, चतुर्मुख, हेमरथ, शतरथ, पृथु, अज, पयोरथ, इन्द्ररथ, मृर्यरथ (दिननाथरथ)," मान्धाता, वीरमैन, प्रतिमन्यु, दीप्ति, कमलबन्धु, प्रताप, रविमन्यु, वसन्ततिलक, कुबेरदत्त, कीर्तिमान, कुन्थुक्ति , शरभरथ, द्विरदरथ, सिंहदमन, हिरयकशिपु, पुञ्जस्थल, ककुत्थ और रघु।' 2.7 रघुवंश के इक्ष्वाकुराजा जैन पौराणिक राजवंशावलियों में 'रघुवंश' का भी नामोल्लेख मिलता है। यह वंश भी अयोध्या के इक्ष्वाकु राजाओं का ही वंश था। इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न राजा रघु से 'रघुवंश' की उत्पत्ति हुई है।" 'पद्मपुराण' के अनुसार राजा रघु के अयोध्या में अनरण्य नामक पुत्र हुआ। उसने सम्पूर्ण देश में अरण्यों अर्थात् जङ्गलों को काटकर लोगों को बसाने का उपक्रम किया था इसलिए रघु के पुत्र का नाम 'अनरण्य' प्रसिद्ध हुआ। राजा अनरण्य की रानी का नाम पृथिवीमती था। उससे दो पुत्र हुए जिनमें ज्येष्ठ का नाम अनन्तग्थ और छोटे पुत्र का नाम दशरथ था। राजा अनरण्य अपने ज्येष्ठ पुत्र अनन्तरथ के साथ जैन धर्म में दीक्षित हो गए तथा अयोध्या के उत्तराधिकारी दशरथ बने। राजा दशरथ की चार रानियां थीं अपराजिता, सुमित्रा, केकया और सुप्रभा। अपराजिता से राम अथवा 'पद्म' या