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________________ 160 अनेकान्त 61/1-2-3-4 के अतिरिक्त वेद, पुराण और स्मृतियों का आश्रय अत्यावश्यक है। 'जैनधर्म का इतिहास' लिखते हुए मुनिश्री का कथन है कि "यह अवश्य हमारा अहोभाग्य है कि भगवान् ऋषभदेव के सम्बन्ध में वैदिक साहित्य में अत्यन्त उदारता पूर्वक उल्लेख किया गया है। भगवान् ऋषभदेव के सम्बन्ध में 'श्रीमद्भागवत' में खूब विस्तार पूर्वक लिखा गया है और उन्हें परमहंस धर्म तथा जैन धर्म का प्रवर्तक माना गया है।' 1.6 ईसा-पूर्व छठी सदी : धार्मिक सुधारवादी शताब्दी ऐतिहासिक दृष्टि से ईसा-पूर्व छठी सदी न केवल भारत में अपितु समूचे विश्व में धार्मिक आन्दोलनों को जन्म देने वाली महत्त्वपूर्ण शताब्दी रही है। भारत में वैदिक धर्म के पतन के बाद धार्मिक जगत् में जो शृन्यता और अराजकता का दौर उत्पन्न हुआ, भगवान् महावीर तथा गौतम बुद्ध ने उसे क्रमश: जैन तथा बौद्ध धर्मों के सुधारवादी आन्दोलनों से एक नई दिशा की ओर प्रेरित किया। इसी समय ग्रीस में पाइथैगोरस और सुकरात तथा चीन में कन्फ्य॒ शस आदि विचारक भी अपने अपने देशों की पुरातन मान्यताओं के विरुद्ध क्रान्तिकारी धार्मिक आन्दोलनों को दिशा प्रदान कर रहे थे। __भारतवर्ष में छठी शताब्दी ई० पू० के धार्मिक आन्दोलनों को प्रभावित करने में केवल भगवान् महावीर अथवा गौतमबुद्ध का ही योगदान नहीं था बल्कि वेद विरोधी अन्य दार्शनिक विचारक जैसे मक्खलि गोशाल, पूरण कश्यप, अजित केशकम्बलि, प्रक्रुध कात्यायन, संजय वेलट्ठिपुत्र आदि की भी महत्त्वपूर्ण भृमिका रही थी।" वेद विरोधी इस श्रमण परम्परा से पूर्व वैदिक कालीन श्रमण परम्परा ने औपनिषदिक चिन्तन द्वारा वैदिक कर्मकाण्ड और पौरोहित्यवाद के विरुद्ध अपना दार्शनिक स्वर मुखर कर दिया था। उदाहरण के लिए 'मुण्डकोपनिषद्' ने वैदिक कर्मकाण्डों की निन्दा करते हुए यह उद्घोषणा कर दी थी कि कर्मकाण्डों की जीर्णशीर्ण नौका पर बैठे अज्ञानी संसार सागर को तैरने में असमर्थ रहते हैं और उनका डूबना निश्चित है। 'मुण्डकोपनिषद्' ने श्रौत तथा स्मार्त कर्मों को अन्धविश्वास की संज्ञा प्रदान की। इसी प्रकार 'कठोपनिषद्' के 'नचिकेतोपाख्यान' में वैदिक पुरोहितवाद पर व्यङ्ग्य किया गया है। तो 'केनोपनिषद्' में भी अग्नि, वायु आदि देवताओं के प्रभुत्व पर प्रश्नचिह्न लगाया गया है।" वास्तव में वैदिक कर्मकाण्ड और शुष्क पौरोहित्यवाद के विरुद्ध छठी शताब्दी ई० पू० में जो वैचारिक आन्दोलन चला उसकी मुख्य रूप से दो धाराएं थी - वैदिक धारा तथा वेदेतर बौद्ध एवं जैन धारा जिन्हें 'श्रमणधारा' कहना इसलिए
SR No.538061
Book TitleAnekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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