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________________ पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार के प्रकीर्णक निबंधों का मूल्यांकन - प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी जैन परम्परा के इतिहास और साहित्य आदि के क्षेत्र में पं. नाथूरामजी प्रेमी, डॉ. हीरालालजी जैन, डॉ. कामताप्रसादजी, डॉ. ज्योति प्रसाद जैन, पं. कैलाशचन्दजी सिद्धान्तशास्त्री, पं. परमानन्दजी, पं. मिलापचन्द कटारिया, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, डॉ. जगदीशचंद जी आदि जिन अनेक विद्वानों के लेखन से मैं अत्यधिक प्रभावित रहा हूँ, उनमें श्रद्धेय पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार का अन्यतम स्थान और नाम रहा है। इन सबके द्वारा लिखित साहित्य को पढ़कर मुझे इस क्षेत्र में विशेष आकर्षण और बहुत कुछ कार्य करने की प्रेरणायें प्राप्त हुई। श्रद्धेय मुख्तार सा. का सृजन इतनी विविधता और विशालता लिए हुए है कि आश्चर्य होता है कि क्या एक जीवन में इतना कार्य सम्भव है? उन्होंने दूसरों को इन क्षेत्रों में नये-नये लेखन और अनुसंधान करने की प्रेरणा, मार्गदर्शन दिया ओर दूसरों के लेखन के संशोधन जैसे कार्य भी उन्होंने कम नहीं किये। मुख्तार जी का व्यक्तित्व और कर्तृत्व आदर्श और महानता की एक मिसाल है। इन्होंने सन् 1896 से ही लेखन कार्य प्रारम्भ कर दिया था। गष्ट्रवादी विचारधारा की साकार प्रतिमूर्ति तो वे थे ही, एक श्रेष्ठ कवि भी थे। आपके द्वारा “जिसने राग द्वेप कामादिक जीते . . .'' रूप में लिखित 'मेरी भावना' नामक पद्य रचना धर्म, समाज, राष्ट्रभक्ति और आत्म-उन्नयन के लिए समर्पित अमर कविता है। यह सार्वत्रिक, सार्वकालिक और समसामयिक भी है; इसीलिए यह लोकप्रिय 'मेरी भावना' कविता अनेक स्कूलों, सार्वजनिक सभाओं में प्रार्थना के रूप में भी गायी जाती है। वस्तुतः मुख्तार जी की यह कविता ही उन्हें महान् कवि, लेखक, चिन्तक और सच्चा देशभक्त सिद्ध करने के लिए पर्याप्त थी,
SR No.538061
Book TitleAnekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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