SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 611-2-3-4 जैन अनुसंधान के क्षेत्र में त्रैमासिक शोध पत्रिका 'अनेकान्त' का एक समृद्ध इतिहास रहा है। इसने जैन अनुसंधान को कई नये आयाम दिये हैं। हमारा प्रयास है कि 'अनेकान्त' में नये, मौलिक शोध निबन्धों को प्रकाशित किया जाये। जैनविद्या तथा प्राकृत भाषा से सम्बन्धित वेचारिक गवेषणात्मक, तुलनात्मक शोधपूर्ण स्तरीय निबन्ध प्रकाशन हेतु सदेव आमंत्रित हैं। निबन्ध की प्रामाणिकता, उपयोगिता तथा उसके स्तर का मूल्याकन करके ही उसे अनेकान्त में प्रकाशित किया जाता है। हम चाहते हैं कि शास्त्रीय निबन्धों के साथ-साथ आधुनिक वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक तथा युगीन समस्याओं के सन्दर्भ में भी जेनविद्या के विविध पहलुओं से सम्बन्धित निवन्ध प्रकाशित हों। दर्शन को मात्र बौद्धिक विमर्श तक सीमित न रखकर उसमें छिपे उन सूत्रों को सार्वजनिक करने की आवश्यकता है जिनसे मनुष्य के प्रायोगिक जीवन को सुव्यवस्थित करने में सहायता मिलती है। प्राचीन जैन आगमों, शास्त्रों में से ऐसे सूत्र भी खोजे जा सकते हैं जो विज्ञान को नयी दिशा दे सकें, प्रबन्धन की कला बता सकें, या फिर तनाव-मुक्ति के सूत्र दे सकें। इन विषयों से सम्बन्धित प्रामाणिक आलेख भी आमंत्रित है। विभिन्न भारतीय विश्वविद्यालयों में जो भी छात्र शोध-कार्य कर रहे हैं, यदि वे उपरोक्त सभी विषयों से सम्बन्धित मोलिक शोध-निबन्ध अपने निर्देशक महोदय से संस्तुत करवा कर भेजते हैं, तो हम उन्हें भी प्रोत्साहित करेंगे। उनके शोध-प्रबन्ध पूर्ण होने के बाद हमारा प्रयास होगा कि उनके शोध-निष्कर्ष को शोध-प्रबन्ध के परिचय के साथ प्रकाशित किया जाये। इससे समकालीन शोध कार्यों से अन्य सभी शोधार्थी परिचित हो सकेंगे एवं उससे लाभान्वित होंगे। ___ इसी अंक से हम साहित्य-समीक्षा भी प्रारंभ कर रहे हैं। समकालीन जो भी साहित्य जैनविद्या एवं प्राकृत भाषा से सम्बन्धित विषयों में प्रकाशित हो रहा है, इस स्तम्भ में उसकी समीक्षा प्रकाशित की जायेगी। ग्रन्थों की समीक्षा के लिए, प्रकाशित ग्रन्थों की दो प्रतियाँ कार्यालय में प्रेपित करना अनिवार्य होगा। ऐसा शोध-प्रबन्ध या कोई भी पाण्डुलिपि जो प्रकाशित नहीं की गयी है, उसकी मात्र एक प्रति भी भेजी जाये तो उसकी समीक्षा भी हम पाठकों के लाभ के लिए प्रकाशित करेंगे। कोई भी पत्रिका बिना लेखकों एवं पाठकों के उत्साहपूर्ण सहयोग के अधूरी
SR No.538061
Book TitleAnekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy