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________________ अनेकान्त 60/1-2 99 है क्योंकि यहां तो क्षणिकत्व अथवा नित्यत्व जो वस्तु के अंश हैं उन्हें पूर्ण वस्तु ही मान लिया गया है अर्थात्- यहां पर अंश में अनंशं की कल्पना है, अनंश में अंश की नहीं। इसलिये बौद्ध और नैयायिकों की दृष्टि में क्रम से ये दोनों वाक्य प्रमाण-वाक्य ही हैं, नयवाक्य नहीं। जैन लोग इन लोगों की इस दृष्टि को गलत कहते हैं; क्योंकि इन लोगों ने वस्तु के अंश भूत क्षणिकत्व या नित्यत्व को पूर्ण वस्तु ही मान लिया है इसलिये अंश में अंशी की परिकल्पना होने से इसका प्रतिपादक वाक्य जैनियों की दृष्टि से प्रमाणाभास ही कहा जायगा; तात्पर्य यह है कि यदि वस्तु केवलक्षणिक या केवल नित्य नहीं है तो केवल क्षणिकत्व या केवल नित्यत्व के प्रतिपादक वाक्य प्रमाण न होकर प्रमाणाभास तो माने जा सकते हैं। उनको नय अथवा नयाभास मानना ठीक नहीं है। जैनधर्म में भी 'वस्तु क्षणिक है,' या 'वस्तु नित्य है' ऐसे स्वतंत्र स्वतंत्र वाक्य पाये जाते हैं और जब जिस धर्म की प्रधानता से वर्णन करना जरूरी होता है उसी धर्म के प्रतिपादक वाक्य का प्रयोग जैनी लोग व्यवहार में भी किया करते हैं लेकिन जैन धर्म के ग्रन्थों में या जैनियों द्वारा लोक व्यवहार में प्रयुक्त इन वाक्यों को भी - यदि ये अलग-अलग प्रयुक्त किये गये हैं- तो प्रमाण-वाक्य ही कहा जायगा नय वाक्य नहीं; कारण कि इन वाक्यों द्वारा एक धर्ममुखेन वस्तुका ही प्रतिपादन होता है। जिस प्रकार नेत्रों द्वारा रूपमुखेन वस्तुका ही बोध होने की वजह से उस ज्ञान को प्रमाण माना गया है उसी प्रकार इन वाक्यों द्वारा एक धर्ममुखेन वस्तु का ही प्रतिपादन होने की वजह से उन्हें भी प्रमाण-वाक्य ही मानना ठीक है, नयवाक्य मानना ठीक नहीं हैं। लेकिन जहाँ पर ये दोनों वाक्य वस्तु नित्य है और अनित्य है, इस प्रकार मिलाकर प्रयुक्त किये जाते हैं वहां पर दोनों वाक्यों का समुदाय भी प्रमाण-वाक्य है क्योंकि वह विवक्षित अर्थ का प्रतिपादन करता है और उसके अवयवभूत दोनों वाक्य नय कहे जायेंगे क्योंकि वहां पर उनसे विवक्षित अर्थ के एक अंश का ही प्रतिपादन होता है। तात्पर्य यह है कि 'वस्तु क्षणिक है' और 'वस्तु नित्य है' इन दोनों वाक्यों का स्वतंत्र प्रयोग करने पर यदि ये
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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