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अनेकान्त 60/1-2
विकास की जानकारी हेतु जैन वाङ्मय का अध्ययन आवश्यक है। ___ श्रमण जैन संस्कृति की सम्पूर्ण धरोहर हमारे आचार्यों द्वारा प्रणीत शास्त्रों में सुरक्षित है। जैन समाज यों तो उत्सवों में अति उत्साह से तन-मन और धन से सहभागिता करता है, परन्तु इस महत्त्वपूर्ण विधा के उन्नयन और विकास में 20वीं शताब्दी में जिन संस्थाओं की स्थापना हुई और उनसे महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न हुए, उनकी गति अब मन्थर हो चुकी है। चर्चा तो बहुत होती है, चिन्ता भी व्यक्त की जाती है लेकिन अपेक्षित कार्य की दिशा में सक्रियता का अभाव दृष्टिगोचर होता है। अतः हम सभी का यह पुनीत कर्तव्य बनता है कि हम श्रुतपंचमी पर मात्र श्रुत-आराधना ही न करें, अपितु उसके उद्धार के लिए भी सक्रिय भागीदारी की मानसिकता विकसित कर उसे गति प्रदान करने में आगे आवें। ___आज के वैश्विक परिदृश्य में अहिंसा की जितनी आवश्यकता महसूस की जा रही है, उसका अहसास हमें इस बात से हो जाना चाहिए कि महात्मा गांधी जैसे व्यक्ति ने सत्य, अहिंसा को व्यावहारिक सूत्र प्रदान कर न केवल देश को स्वतन्त्र कराया था, अपितु विश्व को एक जीवन जीने की दिशा भी तय की थी। इस समय गांधी जयन्ती को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसा दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा हो चुकी है। अतः सत्य, अहिंसा के पुजारियों को उसके प्रचार-प्रसार में सक्रिय भागीदारी करनी ही चाहिए।
– डॉ० जयकुमार जैन