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________________ इष्टोपदेश-भाष्य एवं अध्यात्मयोगी मुनि श्री विशुद्धसागर जी - प्राचार्य पं. निहालचन्द जैन. इष्टोपदेश इक्यावन गाथाओं का यथा नाम तथा गुणवाला एक लघुकाय आध्यात्मिक ग्रन्थ है, जो पं. आशाधर जी की संस्कृत टीका के साथ माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला मुम्बई से प्रकाशित हुआ था, बाद में इसका तृतीय संस्करण 1965 में वीर सेवा मंदिर-दरियागंज दिल्ली से प्रकाशित हुआ, जिसके सम्पादक श्री जुगल किशोर 'मुख्तार' युगवीर और अनुवादक पं. परमानन्द शास्त्री थे, प्रति अवलोकनार्थ मिली। इसके रचयिता श्री पूज्यपाद स्वामी का उल्लेख श्रवणवेल्गोल के शिलालेखों में नहीं है, फिर भी कृति अपने महत्व को स्वतः ख्यापित करती है। श्री पूज्यपाद स्वामी 5वीं व 6वीं शताब्दी के लब्ध प्रतिष्ठित तत्त्व दृष्टा आचार्य रहे। आपके गुरु द्वारा प्रदत्त नाम 'देवनन्दी' था, जो प्रकर्ष बुद्धि के धनी और विपुल ज्ञानधारी होने से 'जिनेन्द्र बुद्धि' नाम से भी विश्रुत हुए। बाद में जब से उनके युगल चरण, देवताओं द्वारा पूजे गये, बुधजनों के द्वारा वे 'पूज्यपाद' नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त हुए। आपकी प्रशस्ति में अधोलिखितः ये श्लोक सन्दर्भित हैं। कवीनां तीर्थकृद्देवः कितरां तम वर्ण्यते। विदुषां वाङ्मल-ध्वसि, तीर्थ यस्य वचोपमम् ।। अचिन्त्यमहिमा देवः सोऽभिवन्द्यो हितैषिणः। शब्दाश्च येन सिद्धयन्ति साधुत्वं प्रतिलम्भितः।। पूज्यपाद सदा पूज्यपादः पूज्यै पुनातु माम् । व्याकरणार्णवो येन तीर्णो विस्तीर्ण सद्गुणः।। अपाकुर्वन्ति यद्वाचः कायवाक् चित्तसम्भवम् । कलङ्क- मङ्गिनां सोऽयं देवनन्दी नमस्यते।। शक सम्वत् 1355 में उत्कीर्ण श्रवणबेल्गोल शिलालेख नं. 40(64),
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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