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अनेकान्त 60/1-2
राज्य देकर वे दिगम्बरी दीक्षा धारण कर मुनि बन गए। अपने गुरु के साथ दक्षिण दिशा की ओर प्रयाण किया वहां कटवप्र या कुमारी पर्वत पर अपने गुरु का संन्यासपूर्वक समाधिमरण कराया। 12 वर्ष के अकाल के पश्चात् देश-देशान्तर भ्रमण करके अंत में जिस स्थान पर भद्रबाहु स्वामी ने समाधिमरण पूर्वक नश्वर देह का त्याग किया था उस स्थान पर पहुँच गए। मान्यता है कि दक्षिण प्रांत के जिस कटवप्र या कुमारी पर्वत पर चन्द्रगुप्त मुनि ने तपस्या की थी व सल्लेखना पूर्वक शरीर का त्याग किया था इस घटना की स्मृति में वह पर्वत “चन्द्रगिरि" पर्वत कहलाया।28
सम्राट् की मृत्यु के उपरांत उनके पौत्र अशोक के शासनकाल में स्वयं अशोक ने भी अपने पश्चिमी प्रान्तीय यवन शासक तुषास्फ से इस सुदर्शन झील से नहरें निकलवाई थीं।29
सम्राट अशोक के पश्चात् ई. सन् 150 में रुद्रदामन ने इस झील का बांध टूट जाने पर उसका पुनर्निर्माण कराया।30 ___ सन् 456-57 ई. में स्कन्दगुप्त ने अपार धन खर्च करके इस झील का पुनः निर्माण कराया था। स्कन्दगुप्त ने साम्राज्य के भू-भाग पर पर्णदत्त को नियुक्त किया तथा पर्णदत्त ने शासन संचालन के लिए अपने पुत्र चक्रपालित को नियुक्त किया। चक्रपालित की देख-रेख में ही इस झील का पुननिर्माण किया गया। यथा
स्कन्दगुप्त के जूनागढ़ शिलालेख वर्ष 136-37 के अनुसार-गुप्तकाल के 136 वें वर्ष (ई. सन् 455-56) में भाद्रपदमास (अगस्त-सितम्बर) के छटे दिन रात्रि में भारी वर्षा के कारण सुदर्शन झील (जो कि गिरनार की तली में चारों ओर फैली घाटी में कण्ठनाली- जिसमें कि यह अभिलेख मिलता है- के पार बने हुए एक प्राचीन बांध निर्मित हुआ था) फूट पड़ा। बांध के पुनर्नवीनीकरण द्वारा विदारण का पुनः निर्माण चक्रपालित की आज्ञा से दो महीने के उपरांत वर्ष एक सौ सैंतीस में (ई. सन् 456-57) में सम्पन्न हुआ।