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अनेकान्त 60/1-2
मौर्य ने अपने शासन का सिद्धान्त प्रजाजन का कल्याण एवं नागरिक सुविधाओं को उपलब्ध कराने का रखा था। भ. ऋषभदेव की षटुक्रिया में प्रधान कर्म कृषि कार्य को बढ़ावा देने के लिए अनेक प्रयत्न किए थे। जिनमें दूरस्थ प्रांतों में खेती के लिए सिंचाई के साधन उपलब्ध कराए गए थे। राज्य में सिंचाई आदि के सर्व सुलभ साधनों का प्रयोग किया जाता था।
कमलापति त्रिपाठी का कथन है कि मौर्यकाल में सिंचाई के लिए चार प्रकार के साधनों का प्रयोग किया जाता था- हाथों द्वारा सिंचाई करना, कंधों द्वारा पानी ले जाकर सिंचाई करना, स्रोत से यंत्रों द्वारा सिंचाई करना तथा नदी सरोवर तालाब और कूपों द्वारा सिंचाई करना।23 त्रिपाठीजी आगे कहते हैं कि मौर्य सम्राट के काल में पश्चिमीय प्रान्त के शासक पुष्यगुप्त ने गिरिनगर की पहाड़ी की एक नदी पर बांध बनवाया था। जिसके कारण वह झील रूप में परिवर्तित हो गई और उसका नाम सुदर्शन झील रखा गया।24
भारतीय इतिहास कोष के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने सौराष्ट्र में पुष्यगुप्त नामक एक वैश्य को अपना राष्ट्रीय प्रतिनिधि नियुक्त किया था, जिसने वहाँ की एक नदी पर बांध बनाकर प्रसिद्ध सुदर्शन झील का निर्माण कराया।
जे.एच. दबे के अनुसार चन्द्रगुप्त इस झील का निर्माण किसी अज्ञात राजा ने कराया था, जो अपरकोट से अश्वत्थामा गिरि तक स्वर्ण सिक्ता और पलासिनी नदी को घेरती हुई 268 एकड़ भूमि में बनी थी। From the edicts of Ashoka it appears that this place and the town of Junagarh were famous during Maurgan times. On this very stone Containing edicts of Ashoka there is the inscriptiopn of the 2nd century A.D. of Kshatrapa Rudradaman. It records the repairing of the sudarshan talao, which was originally built by some unknown king, repaired by Ashoka and subsequently further repaired by Rudradaman and Skanda Gupta. The Gupta